भीषण युद्ध में भगवान शिव ने बचाई जान, तो इस फौजी ने गांव आकर बनाया मंदिर, आज यहां दूर-दूर से आते हैं लोग

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 बॉर्डर पर देश की सीमा की सुरक्षा में तैनात जवान अपने पोस्ट पर अपने आराध्य देव की प्रतिमा स्थापित कर मंदिर बना लेते हैं. उनका मानना होता है कि ईश्वर की कृपा से वे ना सिर्फ दुश्मनों के दांत खट्टे करते हैं, बल्कि उन्हीं की कृपा से खुद भी सुरक्षित रहते हैं. ऐसी ही एक घटना कभी फौज में रहे डॉक्टर नंद कृष्ण श्रीवास्तव के साथ भी हुई थी. इसके बाद जब वे फौज से रिटायर हुए तो अपने गांव कर्जा थाना अंतर्गत रकसा गांव में रक्षेश्वर महादेव का शिव सागर धाम बनाया. आज यह मंदिर इलाके में आस्था का केंद्र बना हुआ है.

1971 के जंग में शामिल थे डॉ. नंद कृष्ण

मंदिर के व्यवस्थापक और नंद कृष्ण श्रीवास्तव के चचेरे भाई सुशील कुमार उर्फ भोला जी बताते हैं कि उनके भाई नंद कृष्ण श्रीवास्तव आर्मी में डॉक्टर थे. सन 1971 में पाकिस्तान से जंग के दौरान उनकी जहां पोस्टिंग थी, उस वक्त दुश्मनों ने उनपर हमला कर दिया था. उस दौरान नंद कृष्ण के साथ चार अन्य सिपाही भी थे, जो मौके पर ही मारे गए. इस हमले में नंद कृष्ण श्रीवास्तव अकेले जिंदा बचने वालों में से थे. सुशील बताते हैं कि उस दौरान उनके भाई की पीठ पर एक बैग था, जिसमें माता पार्वती और भगवान शंकर की एक तस्वीर थी. वे मानते थे कि भोले बाबा की कृपा से ही जान बच गई.


लोगों की बढ़ती जा रही आस्था

सुशील कुमार बताते हैं कि फौज की नौकरी से रिटायर होकर जब नंद कृष्ण अपने गांव रकसा पहुंचे, तो उन्होंने अपने गांव में शिव सागर धाम नाम से रक्षेश्वर महादेव की स्थापना करने का निर्णय लिया. महादेव ने मुठभेड़ में उनकी रक्षा की थी, इसलिए उन्होंने मंदिर का नाम रक्षेश्वर महादेव रख दिया. जंग के बाद से नंद कुमार श्रीवास्तव का भगवान महादेव पर विश्वास और बढ़ गया. सुशील कहते हैं कि झांसी में भी अपनी पोस्टिंग के दौरान नंद कृष्ण ने मंदिर की स्थापना की थी. वे बताते हैं कि गांव के इस मंदिर की दूर-दूर तक मान्यता है. लोगों का कहना है कि यहां पर मौजूद शिवलिंग हर दुखों से उनकी रक्षा करता है

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