अक्सर ये कहानियां सुनने को मिलती हैं की किसी के पिता की मौत के बाद बड़े भाई के कंधे पर साडी जिम्मेदारी आ जाती है और वो बखूबी निभाता है। लेकिन आज की इस कहानी में थोड़ा ट्विस्ट है।
नहीं नहीं, ये कहानी काल्पनिक नहीं, बिलकुल असल ज़िन्दगी की ही है।
इस कहानी का नायक दस साल का रंजन है जो प्राइमरी स्कूल धमौल में चौथी का छात्र है। रंजन पिता की मौत के बाद पढ़ाई छोड़ कर काम में लग गया। कभी फल तो कभी सब्जी बेचकर अपने परिवार के लिए रोटी कमाने की जुगत में लगा है। रंजन कहता है कि काम से फुर्सत मिलने पर वह पढ़ाई करता है। मंझला भाई पंद्रह वर्षीय राहुल जो आठवीं का छात्र है, उसने भी पढ़ाई छोड़ दी है। इकलौती बहन आरती अभी मध्य विद्यालय धमौल में आठवीं में पढ़ रही है। इनकी मां को अपनी इकलौती बेटी की शादी की भी चिंता है।
धमौल बाजार निवासी सुरेन्द्र चौधरी की 25 जून 2016 को ताड़ के पेड़ से गिरकर मौत हो गई थी। वह ताड़ी बेचकर परिवार चलता था। उसके मौत से परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। रोहित, राहुल, आरती और रंजन के सिर से पिता का साया उठ गया और परिवार की जिम्मेवारी सबसे बड़े बेटे 16 वर्षीय रोहित पर आ गई।
रोहित बिहारशरीफ में रहकर इंटर की तैयारी कर रहा था। पिता की मौत के बाद रोहित पढ़ाई छोड़कर घर वापस आ गया। परिवार के भरण पोषण के लिए कुछ करने का निर्णय लिया। छोटे भाई, 10 वर्षीय रंजन और पूरा परिवार रोहित के साथ खड़ा हो गया।
सब ने मिलकर उसे पढ़ाई नहीं छोड़ने की सलाह दी। वहीं रंजन जिद पर अड़ गया कि बड़ा भाई अगर पढ़ने नहीं गया तो खाना बंद कर देगा। उसके जिद के आगे रोहित को झुकना पड़ा और वापस बिहारशरीफ जाकर पढ़ाई में लग गया। मां पिंकू देवी का सपना है कि रोहित पढ़-लिखकर एक अच्छी नौकरी करे और फिर अपने बहन भाइयों के भी भविष्य बनाने मे मदद करे।