आपने पीपल के वृक्ष तो अनेकों देखे होंगे, जिसकी सारी टहनियां ऊपर की ओर जाती होगी, लेकिन गया में यहां एक पीपल वृक्ष की सारी टहनियां एक दिशा में मुड़ कर जमीन को छु रही है. पीपल पेड़ की सारी टहनियां दक्षिण दिशा में मुड़ कर जमीन को छू रही है. यह वृक्ष सैकड़ों साल पुराना है. तकरीबन डेढ़ बीघा में यह फैला हुआ है. इसपर सलाना दो लाख रुपये खर्च किए जाते है.
गया के बेलागंज प्रखंड के मेन गांव में पीपल का यह वृक्ष मौजूद है. सैकड़ों साल पुराने इस वृक्ष के बारे में कहा जाता है कि पेड़ के 100 मीटर की दूरी पर बाबा कोटेश्वरनाथ का प्राचीन मंदिर है और पेड़ की सारी टहनियां जमीन को छूते हुए बाबा कोटेश्वर नाथ को प्रणाम कर रही है.इस पेड़ की एक और खासियत यह है कि इसकी सारी टहनियां ऊपर की ओर ना जाकर दक्षिण दिशा में मुड़ कर जमीन को छू रही है. कई टहनियां टूट कर अलग हो गई है बावजूद टहनी सुखी नहीं है और आज भी हरा भरा है.
पीपल के वृक्ष को विलुप्त प्राय प्रजाति का माना गया है. कहा जाता है कि पूरी दुनिया में 70 प्रजाति के 800 विचित्र व विलुप्त प्राय वृक्षों में एक है. जिसे भारत का अकेला पीपल वृक्ष माना जाता है. सरकार की पहल पर इस वृक्ष की देखरेख देहरादून के वैज्ञानिकों के द्वारा किया जा रहा है. प्रत्येक वर्ष वैज्ञानिकों की टीम यहां पहुंचती है. इस वृक्ष का इलाज किया जाता है.
मेन गांव में स्थित कोटेश्वर नाथ मंदिर में दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है. जो भी लोग यहां आते हैं मंदिर के ठीक बगल में मौजूद पीपल का वृक्ष जरूर देखते हैं. कहा जाता है कि जिन श्रद्धालुओं के मन्नतें पूरी होती है, वह इस पीपल वृक्ष की पूजा करते हैं.