मोक्षधाम गया में पितृपक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध और तर्पण शुरू हो गया है। मान्यता है कि गया में भगवान विष्णु पितृ देवता के रुप में निवास करते हैं। यहां अति प्राचीन विष्णुपद मंदिर स्थित है, जिसमें भगवान विष्णु के पदचिन्ह आज भी मौजूद हैं। यह मंदिर फाल्गु नदी के किनारे है।
पितरों के श्राद्ध और तर्पण के लिए बिहार के गया धाम से श्रेष्ठ कोई दूसरा स्थान नहीं है। मान्यता के अनुसार गया में भगवान विष्णु पितृ देवता के रुप में निवास करते हैं। कहा जाता है कि गया में श्राद्ध कर्म करने के पश्चात भगवान विष्णु के दर्शन करने से व्यक्ति को पितृ, माता और गुरु के ऋण से मुक्ति मिल जाती है।
यहां अति प्राचीन विष्णुपद मंदिर स्थित है। इस मंदिर में भगवान विष्णु के पदचिन्ह आज भी मौजूद हैं। ये मंदिर फाल्गु नदी के किनारे स्थित है। इसे धर्मशीला के नाम से जाना जाता है। इनके दर्शन से व्यक्ति को सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
मंदिर के निर्माण के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिल पाई लेकिन कहा जाता है कि श्रीराम और माता सीता इस स्थान पर अवश्य आए थे। वर्तमान मंदिर का निर्माण इंदौर के शासक देवी अहिल्या बाई होल्कर ने सं 1787 में फाल्गु नदी के तट पर करवाया था। भगवान विष्णु के पदचिन्ह मंदिर के केंद्र में स्थित हैं।
हिंदू धर्म के अनुसार ये पदचिन्ह उस समय के हैं जब भगवान विष्णु ने गया की छाती पर पैर रखकर उसे धरती के अंदर धकेल दिया था। मंदिर के भातर 40 सेंटीमीटर लंबा पदचिन्ह है। इसके चारों और चांदी से जड़ा बेसिन है। मंदिर के अंदर एक अविनाशी बरगद का वृक्ष है, जिसे अक्षय वट कहा जाता है। इस वृक्ष के नीचे मृत व्यक्ति की अंतिम रस्मे की जाती है।
पुराणों में भी गया में पितरों का श्राद्ध करने का उल्लेख मिलता है। पुराणों के अनुसार गयासुर नामक राक्षस भगवान से वर प्राप्त करके उसका दुरुपयोग कर देवताओं को परेशान करना शुरु कर दिया। गयासुर के अत्याचर से दुखी देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण में जाकर उनसे प्रार्थना की थी कि वे उन्हें गयासुर के अत्याचार से मुक्ति दिलाएं।
देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने अपना दायां पैर उसके सिर पर रख कर उसे धरती के अंदर धकेल दिया। राक्षस को जमीन के अंदर धकेलने के बाद भगवान विष्णु के पदचिन्ह के निशान सतह पर ही रह गए जो आज भी मौजूद हैं। बाद में भगवान विष्णु ने गया के सिर पर एक पत्थर रखकर उसे मोक्ष प्रदान किया।
गया के विष्णुपद मंदिर में वह पत्थर आज भी मौजूद है। भगवान विष्णु द्वारा गयासुर का वध करने के बाद उन्हें गया तीर्थ में मुक्ति दाता माना गया। कहा जाता है कि गया में श्राद्ध और तर्पण करने से व्यक्ति को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। गया से लगभग आठ किलोमीटर की दूर प्रेतशिला में पिंडदान करने से पितरों के उद्धार होता है।
कहा जाता है कि पितृपक्ष में फल्गु नदी के किनारे विष्णुपद मंदिर के करीब और अक्षयवट के पास पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति मिलती है।