VIP कल्चर के खिलाफ सबसे पहले आवाज उठायी थी बिहार के इस नेता ने

एक बिहारी सब पर भारी बिहारी जुनून

 वीआइपी कल्चर के खिलाफ सबसे पहले बिहार की एक महान विभूति ने आवाज उठायी थी। राजनीति में सादगी की ऐसी मिसाल बहुत कम है। देश के सर्वोच्च पद पर रहते हुए भी उनकी जिंदगी में कोई दिखावा नहीं था।भारतीय संविधान लागू होने के बाद संविधानसभा ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को राष्ट्रपति चुना था। 1952 के पहले आम चुनाव के बाद निर्वाचित सांसदों और विधायकों ने उन्हें देश का राष्ट्रपति चुना। राष्ट्रपति चुने जाने के बाद भी राजेन्द्र प्रसाद सादगीपूर्ण जीवन जीते रहे।

 

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के समय राष्ट्रपति की तनख्वाह 10 हजार रुपये महीना थी। लेकिन राजेन्द्र प्रसाद ने फैसला किया कि वे अपने और परिवार के जीवन यापन के लिए केवल 2 हजार 800 रुपये ही वेतन लेंगे। बाकि पैसे को वे प्रधानमंत्री के राहत कोष में जमा करा देते थे।
उन्होंने तब सरकार से कहा था कि उनकी जितनी जरूरत है उसी के हिसाब से पैसा लेंगे। पद का महत्व जनता की सेवा से है,रुपये पैसों से नहीं। राजेन्द्र प्रसाद के इस फैसले ने कांग्रेस के तत्कालीन नेताओं को धर्मसंकट में डाल दिया था। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू शान-शौकत की जिंदगी जीने वाले थे। उनके मंत्रिमंडल के सदस्य भी सत्ता के सुख से वंचित होना नहीं चाहते थे। कांग्रेस के नेताओं ने राजेन्द्र बाबू का अनुशरण नहीं किया। राजेन्द्र बाबू के इस ऐतिहासिक त्याग को कांग्रेस के नेताओं ने प्रचारित भी नहीं होने दिया । राजेन्द्र बाबू ने साठ पैंसठ साल पहले जो पहल की थी अगर उस पर अमल किया गया होता तो आज देश की तस्वीर दूसरी होती। एक गरीब देश में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सांसद, सीएम, विधायक का वेतन कितना होना चाहिए ? इसको जनता की नजर से कभी नहीं सोचा गया। अब तो माननीय विधायकों को भी डेढ़ लाख का वेतन भत्ता कम ही लगता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *