राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष इस सियासी खीर को बनानें में धार्मिक और जातिय समीकरणों का पूरा संतुलन रहे हैं। जिनमें उनके सिपहसलाहकार महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उपेंद्र कुशवाहा अपने राजनीति महत्वकांक्षा की पूर्ति के लिए जो खीर बना रहे है, उस खीर (व्यंजन ) बनाने के स्त्रोत तो इशारा जो कर रहे हैं, कम से कम उसकी बुनियाद पर न्यू भारत तो नही बन सकता।
उपेंद्र कुशवाहा खीर के लिए दूध- यदुवंशियों से, चावल-रामवंशियों से, चीनी-सवर्णों से अतिपिछडा समाज से-पचमेवा अनुसूचित जाति से—तुलसी पत्ता के साथ अल्पसंख्यक वर्ग से दस्त खान से लेकर सियासी खीर बनाएंगे। उससे बिहार का कितना भला होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा। उपेंद्र कुशवाहा का यह सियासी खीर बिहार की राजनीति में नए समीकरण बनने की ओर इशारा कर रहा है। गौरतलब है कि उपेंद्र कुशवाहा पिछले कुछ वक्त से नाराज हैं ।
इसका कारण एनडीए में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू की वापसी है। जिससे उनका कद इस गठबंधन में कम हो गया है। बीपी मंडल की जयंती कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उपेंद्र कुशवाहा ने इशारों-इशारों में कह दिया कि यदि यादवों का दूध और कुशवाहा का चावल मिल जाए तो एक बढ़िया खीर बन सकती है। वहीं महागठबंधन में शामिल होने के उपेंद्र कुशवाहा के बयान पर जेडीयू ने तंज कसते हुए कहा है कि अगर उपेंद्र कुशवाहा दूध और चावल मिलाकर खीर बनाएंगे तो वह एक मीठा पदार्थ बनेगा जिससे शुगर की बीमारी हो सकती है।
जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि ऐसे में जरूरी है कि मीठा ना खाकर नमकीन खाया जाए जिससे शरीर को कोई हानि नहीं पहुंचती। यानी इशारों ही इशारों में जेडीयू ने भी उपेंद्र कुशवाहा को NDA में बने रहने की सलाह दी है बहरहाल, कुशवाहा की कोशिश मिठास वाली ‘खीर’ बनाने की भले हो लेकिन उनकी खीर पर बिहार में सियासी खिचड़ी पकने लगी है। ये तो आने- वाला समय ही तय करेगा की उपेंद्र कुशवाहा सियासी खीर से बिहार की जनता का कितना भला होगा।