भोजपुरी गाने को वैश्विक पटल पर पहचान दिलाने वाली पद्मश्री शारदा सिन्हा ही एक ऐसी शख्स़ियत हैं, जिन्हें लोकगीतों से अलग नहीं किया जा सकता. शारदा कहती हैं कि उन्होंने कभी हिसाब नहीं लगाया था कि वे कितने सालों से गा रहीं है. उन्हें सिर्फ इतना पता है कि उन्होंने संगीत के साथ-साथ जीना सीखा है.
शारदा सिन्हा के मुताबिक संगीत को सीखने और सिखाने में उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा गुज़ारा है, लेकिन आज भी वो खुद को संगीत का छात्र ही मानती हैं.
कोयल बिन बगिया ना सोहे राजा
शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर 1953 में बिहार के सुपौल जिले के हुलास गांव में हुआ था. शारदा पिछले 45 सालों से भोजपुरी गायन कर रही हैं.
उनके पिता सुखदेव ठाकुर बिहार सरकार के शिक्षा विभाग में अधिकारी थे और उन्होंने उनमें गायकी के गुण देखने के बाद उसे सींचने का फैसला किया.
अपना बलमा के जगावे सांवर गोरिया
पिता ने शारदा में गायन की अपार संभावनाओं को देखते हुए उन्हें बाकायदा नृत्य और संगीत की शिक्षा दिलवानी शुरु कर दी और घर पर ही एक शिक्षक आकर शारदा सिन्हा को शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देने लगे.
शारदा सिन्हा ने सुगम संगीत की हर विधा में गायन किया, इसमें गीत, भजन, गज़ल, सब शामिल थे लेकिन उन्हें लोक संगीत गाना काफी चुनौतीपूर्ण लगा और धीरे-धीरे वो इसमें विभिन्न प्रयोग करने लगीं.
शादी के बाद इनके ससुराल में इनके गायन को लेकर विरोध के स्वर भी उठे लेकिन पहले पति का साथ और फिर बाद में सास की मदद से शारदा सिन्हा ने ठेठ गंवई शैली की गीतों को गाया.
कहे तोसे सजना तोहरी सजनियां
शारदा सिन्हा के बाद भी कई लोकगायिकाएं आईं, लेकिन किसी को वो पहचान नहीं मिल सकी जो शारदा जी को मिली और इसकी एक वजह इनकी ख़ास तरह की आवाज है जिसमें इतने सालों के बाद भी कोई बदलाव नहीं आया है.
शारदा की आवाज़ आज भी काफी खनकदार है और कशिश से भरी है जो किसी को बरबस आकर्षित कर लेती है.
उनके अनुसार, ”लोगों को मेरी आवाज़ इसलिए भाती है क्योंकि मैं जो भी गाना गाती हूं उसमें पूरी तरह से डूब जाती हूँ, उसमें जीने लगती हूं. चूंकि मैंने शास्त्रीय संगीत सीखा है इसलिए मेरे गायन में एक तरह का ठहराव है जो लोगों को अच्छा लगता है.”
इसकी वजह उन्होंने बताई कि कई बार ऐसे लोग सुनने चले आते हैं जिनमें संगीत सुनने का संस्कार नहीं होता, लोग संगीत को समझ कर सराहें इसलिए वो उनसे लगातार बात करती रहती हैं.
कई भोजपुरी और हिंदी फिल्मों में ग़ायिकी में परचम लहराने वाली शारदा सिन्हा ने साल 2012 में रिलीज़ हुई अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर में, ”तार बिजली से पतले हमारे पिया, ओ री सासु बता तूने ये क्या किया” गाया है.
तार बिजली से पतले हमारे पिया
इस गाने के बारे में वो कहती हैं जब फिल्म के निर्देशक अनुराग कश्यप और संगीतकार स्नेहा खानवलकर ने उनसे ये गाना गाने को कहा तो उन्हें खुशी तो बहुत हुई पर मन में हिचकिचाहट भी थी कि उन्हें ऐसा गाना गाना चाहिए या नहीं.
लेकिन जब स्नेहा ने उन्हें समझाया वे एक ख़ास तरह का शादी का गाना चाहती हैं जिसमें गायकी और लोकसंगीत पुट भी हों तो उन्हें लगा कि शायद ये भी एक नए तरह का प्रयोग होगा.
शारदा सिन्हा को भारत सरकार की ओर से संगीत नाटक अकादमी, पद्मश्री, बिहार कोकिला सम्मान से विभूषित किया गया है. शारदा सिन्हा 2009 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग की ब्रांड एंबेसडर भी रही हैं.