50 लोगों की भीड़ सामने युवक तड़पता रहा, कोई आगे नहीं आया-3 बहनों के इकलौते भाई की मौत

जिंदगी

पटना: झालावाड़ रोड पर मिनीबस ने एक कोचिंग स्टूडेंट को टक्कर मार दी। हादसे के बाद खून से लथपथ स्टूडेंट तड़पता रहा, करीब 50 लोगों का मजमा लगा था। बगल से वाहन गुजरते रहे। लेकिन उठाकर अस्पताल पहुंचाना तो दूर उसे छूने की भी जहमत किसी ने नहीं उठाई। किसी को एंबुलेंस का इंतजार था तो कोई कपड़े गंदे होने के डर से दूरी बनाए हुए था।

ये था पूरा मामला..

करीब 20 मिनट लड़का वहीं तड़पता रहा। बाद में उधर से गुजर रहे एक शख्स ने अस्पताल पहुंचाया, लेकिन उसको बचाया नहीं जा सका। मरने वाला कोटा के तलवंडी इलाके का राघव गौतम (17) था। वह कोचिंग से स्कूटी से घर लौट रहा था। राघव के पिता सच्चिदानंद की 4 साल पहले बीमारी से मौत हो चुकी है। उससे बड़ी 3 बहनें रानू, अंशु और लवली हैं। वह तीन बहनों का इकलौता भाई था। पिता की मौत के बाद मां का एकमात्र आसरा था। वहां से गुजर रहे राहुल सेठी ने राघव को अस्पताल पहुंचाया लेकिन उसकी जान नहीं बची।

दो दिन पहले ही बदलवाया था क्लास का समय

राघव ने क्लास का समय दो दिन पहले ही बदलवाया था। इससे पहले उसकी क्लास का टाइम शाम का था। उसकी तीनों बहनें सदमे में हैं। दो बड़ी बहनों की शादी हो चुकी, जबकि सबसे छोटी बहन लवली अभी अविवाहित है। वह पूरे समय लैपटॉप पर पुराने फोटो देखकर उसे याद करती रही। परिजनों ने बताया कि वह मेडिकल एंट्रेंस की कोचिंग कर रहा था। मां गायत्री देवी तो बात करने की स्थिति में नहीं हैं।

सिर में गंभीर चोट बनी मौत की वजह

हादसे के दौरान वहां मौजूद किसी शख्स द्वारा नोट किए गए नंबरों के आधार पर एक पीले रंग की मिनी बस के चालक के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। पुलिस का यह भी कहना है कि राघव की स्कूटी मामूली क्षतिग्रस्त हुई है, लेकिन वह नीचे गिरा तो टायर के नीचे आ गया। इस वजह से सिर में गंभीर चोट लगी और यही उसकी मौत की वजह बनी। डॉक्टरों के मुताबिक, उसका पूरा ब्रेन डैमेज हो चुका था और इससे उसका ब्लड लॉस काफी ज्यादा हो गया था।

आंखों देखी : बुलाने पर भी मदद को आगे नहीं आए लोग

”मैं और मेरा दोस्त अर्पित बाइक से सिटी मॉल की तरफ से आ रहे थे। आईएल फ्लाईओवर के ठीक पहले भीड़ लगी हुई थी। मैंने बाइक रोकी तो एक लड़का लहूलुहान पड़ा था। बाइक से उतरकर मैं चिल्लाया कि सभी लोग खड़े क्यों हो? तभी वहां एक कोचिंग फैकल्टी भी मिल गए। वे आगे आए। बच्चे को उठाने के लिए हमने आवाज लगाई, तब भी कोई नहीं आया। मैं फिर झल्लाया, लेकिन फिर खुद पर कंट्रोल करते हुए मैंने और कोचिंग के टीचर ने मिलकर उनकी ही गाड़ी से उसे मैत्री हॉस्पिटल तक पहुंचाया। यह हॉस्पिटल सबसे नजदीक था।”

रास्ते में उसकी नब्ज देखी तो चल रही थी। हम दोनों को लगा कि बचा पाएंगे। लेकिन हॉस्पिटल में डॉक्टरों ने चेक किया तो जवाब दे दिया। उसके बैग से मिले नाम के आधार पर मेरे साथ मौजूद टीचर ने कोचिंग में संपर्क किया और उसके घर वालों को सूचना दी। मैं अंदर तक हिल चुका था…अभी तक रोना आ रहा है कि बच्चे को बचा नहीं पाए। इस बात पर सबसे ज्यादा गुस्सा आ रहा है कि लोग करीब 20 मिनट तक वहां खड़े रहकर देखते रहे, लेकिन किसी ने उसे 500 मीटर दूर स्थित अस्पताल पहुंचाने का प्रयास नहीं किया। यह ऐसा रोड है, जहां से हजारों वाहन गुजरते हैं, लेकिन उन्होंने भी किसी ने अपनी गाड़ी रोककर उसे अस्पताल पहुंचाने की नहीं सोची। पता नहीं कैसे बनते जा रहे हैं हम…. शर्म आती है मुझे तो… क्या बताऊं, मैं अब तक नॉर्मल नहीं हो पा रहा हूं।

– राहुल सेठी, राघव को अस्पताल पहुंचाने वाला शख्स।

घायल की मदद पर पुलिस नहीं करती पूछताछ

हादसे में घायल व्यक्ति को लोग इस डर से अस्पताल नहीं पहुंचाते हैं कि पुलिस पूछताछ करेगी। इस दौरान घायल के शरीर से खून बह जाता है और उसे बचाना मुश्किल हो जाता है। आम जनता से अनुरोध है कि दुर्घटना में कोई घायल हो तो बिना हिचकिचाहट उसे नजदीक के अस्पताल में पहुंचाएं। मदद करने वालों को कोई बयान दर्ज करने के लिए नहीं बुलाया जाएगा।

– अंशुमन भौमिया, एसपी सिटी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *