दशहरा पर बिहार के एक गांव में पिछले 96 साल से कायम है नाटक की परम्परा

आस्था

पटना : रामलीला और नाटक बिहार की लोककला और सांस्कृतिक विरासत है। दुर्गा पूजा के मौके पर इस कला की सर्वोत्तम प्रस्तुति होती है। गांव- गांव, शहर-शहर रामलीला और नाटक की धूम रहती है। पटना जिले में एक ऐसा गांव है जहां नाटक की परम्परा पिछले 96 साल से कायम है। इस ऐतिहासिक विरासत को संभालने वाले गांव का नाम है पंडारक जो पटना से करीब 80 किलोमीटर दूर है। हालांकि इस गांव में 1912 में ही नाटकों की शुरुआत हो गयी थी लेकिन दशहरा के मौके पर नाटकों की परम्परा 1922 से शुरू हुई थी।

पंडारक में नाटक की ऐतिहासिक परम्परा रही है जिसकी गूंज महान अभिनेता पृथ्वीराज कपूर तक पहुंच गयी थी। रंगमंच और हिन्दी सिनेमा के महान अभिनेता पृथ्वीराज कपूर नाटकों के मंचन के लिए 1956 में अपनी टोली के साथ पटना आये हुए थे। पटना में उन्होंने पंडारक के समृद्ध नाटक परम्परा की चर्चा सुनी। इसके बाद वे अपनी पूरी टोली के साथ पंडारक पहुंच गये और नाटकों का मंचन किया। उस समय पृथ्वी राज कपूर के साथ शशि कपूर भी आये थे जो पंडारक गये थे।

पंडारक में नाटकों की शुरुआत चर्चित स्वतंत्रता सेनानी चौधरी राम प्रसाद शर्मा ने की थी। जब गया में कांग्रेस का महाधिवेशन हुआ था तब राम प्रसाद शर्मा भी उसमें शामिल हुए थे। वहीं उन्हें नाटकों के माध्यम से जागृति फैलाने की प्रेरणा मिली। इसके बाद अपने गांव के लोगों में राष्ट्र प्रेम की भवना जगाने के लिए उन्होंने नाटकों का सहारा लिया था। 1912 में जब इसकी शुरुआत हुई तो लोगों को मनोरंजन का एक नया जरिया मिल गया। यानी पंडारक में नाटक की परंपरा सौ साल से भी अधिक पुरानी है।

जब नाटकों की लोकप्रियता बढ़ गयी तो 1922 में दुर्गापूजा के समय इसका आयोजन नियमित हो गया। पंडारक में राम प्रसाद शर्मा ने इसी साल हिंदी नाटक समाज संस्था का गठन किया जिस पर नाटकों के मंचन की जिम्मेवारी थी। इसके बाद पंडारक में नाटकों की ऐसी धूम मच गयी कि गांव में इसके मंचन के लिए होड़ शुरू हो गयी। 1949 में एक दूसरी नाट्य संस्था का निर्माण हुआ जिसका नाम है कला निकेतन। इसके बाद 1957 में किरण कला निकेतन के नाम से तीसरी नाट्य संस्था का गठन हुआ।

पंडारक में अभी पांच नाट्य संस्थाएं हैं। पहले बांस बल्ला और चौकी डाल कर नाटक खेला जाता था। लेकिन अब व्यवस्थित रंगमंच बन गये हैं। दशहरा के मौके पर यहां सात दिनों तक अलग-अलग मंचों पर अलग अलग नाटक होते हैं जिसमें लोगों की भारी भीड़ जुटती है। आसपास के गांव के लोगों में यहां के नाटकों का क्रेज है।

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