एक रात में बने इस मंदिर में 3 रूपों में विराजे हैं सूर्य देव,छठ पर्व पर यहां लाखों श्रद्धालु आते हैं।

जानकारी

देश में जहां भी सूर्य मंदिर स्थित हैं सबकी अपनी अलग ही महिमा है। किसी को उनकी अनोखी बनावट तो किसी को अद्भुत मान्यता के चलते जाना जाता है, लेकिन आज आपको जिस मंदिर के बारे में बताया जा रहा है। उसके संबंध में कहा जाता है कि भगवान सूर्यदेव ने स्वयं ही उसका निर्माण किया था वह भी एक रात में। करीब डेढ़ लाख वर्ष पूर्व बने इस मंदिर में छठ पर्व के अवसर पर लाखों लोग सूर्य आराधना के लिए एकत्रित होते हैं।

त्रेता युग में निर्मित

मूलरूप से बिहार के औरंगाबाद जिले से करीब 18 किलोमीटर दूर स्थित है। इसे पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इसे लेकर कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं इसका निर्माण त्रेता युग में किया था। उन्होंने इसे अनोखी कलाकृति के साथ एक रात में ही बना डाला था।

पुरी के मंदिर के समान

इसकी शैली ओडिशा के पुरी स्थित जन्नाथ मंदिर से मिलती-जुलती है। ये करीब सौ फीट ऊंचा है। इसकी बाहरी दीवार पर एक शिलालेख में ब्राम्ही लिपि में श्लोक लिखा हुआ है। जिसके अनुसार इसका निर्माण त्रेता युगह बीत जाने के बाद इला पुत्र पुरूरवा एल ने आरंभ कराया था। शिलालेख के अनुसार इसके निर्माण को एक लाख पचास हजार वर्ष बीत चुके हैं।

सूर्य के समान ही तेज

इस मंदिर में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल (सुबह) सूर्य, मध्याचल (दोपहर) सूर्य और अस्ताचल (अस्त) सूर्य के रूप में मौजूद हैं। पूरे देश में यही एकमात्र सूर्य मंदिर है जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है। इसके संबंध में कहा जाता है कि यहां सूर्यदेव की आराधना करने से सूर्य के समान ही तेज प्राप्त होता है जो मनुष्य को उन्नति के शिखर पर ले जाता है। हर साल छठ पर्व पर यहां लाखों श्रद्धालु छठ करने झारखंड, मध्य प्रदेश, उतरप्रदेश समेत कई राज्यों से आते हैं।

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