तर्पण के साथ कर्मकांड शुरू, पितृ दोष से मुक्ति के लिए करें ये काम; जीवन हो जाएगा सुखमय

आस्था जानकारी

मोक्षधाम गयाजी में शुक्रवार की सुबह अन्य दिनों से कुछ अलग हटकर था। इस भूमि पर एक पखवारे तक पितरों के जयकारे से गुंजायमान होने लगा है।

सुबह से ही पवित्र फल्गु नदी के तट पर पिंडदानियों की भीड़ जुटने लगी थी। पिंडदानियों की भीड़ सबसे अधिक विष्णुपद के गजाधार एवं देवघाट पर देखा जा रहा था।

जानकारी के मुताबिक, फल्गु देवघाट पर हवा मंद-मंद गति से बह रही थी, जहां पुरोहित के साथ पिंडदानी पहुंच रहे थे। सूर्य की लालिमा अब पूरी तरह से छट चुकी थी। धीरे-धीरे घाट पर भीड़ बढ़ने लगी।

झुंड के झुंड में आए पिंडदानी अपने पितरों को तर्पण देने के कार्य में जुट हुए थे। यह तर्पण और कर्मकांड लगातार एक पखवारे तक चलेगा।

शनिवार को प्रेतशिला पर होगा पिंडदान

वहीं, शनिवार को पिंडदान प्रेतशिला, रामशिला, रामकुंड एवं काकवलि वेदी पर होगा, जहां बड़े शिला पर तिल मिश्रित सत्तू उड़ाया जाता है। मान्यता है कि जो भी पितर प्रेतत्व को प्राप्त हो गए हैं, उन्हें मुक्ति मिलती है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, पितृपक्ष का पहला दिन फल्गु जल के तर्पण करने से ही शुरू हो जाता है। गयाजी की इसी मान्यता को लेकर पिंडदानी अपने पितरों को जलांजलि दे रहे है। जलांजलि देने के बाद पिंडदानी कर्मकांड कर रहे थे।

गयाजी में जुटे देश-विदेश से पिंडदानी

देवघाट का दृश्य ऐसा दिख रहा था कि पूरा देश यहीं पर है, क्योंकि कई राज्यों से आए पिंडदानी अपने पितरों के मोक्ष की कामना को लेकर पिंडदान करते थे। गयाजी डैम के निर्माण होने से फल्गु के दोनों किनारे पानी से लबालब था।

फल्गु के जल में पिंडदानी स्नान कर रहे थे। मान्यता है कि फल्गु को ब्रह्मा जी के द्वारा जगत कल्याण हेतु पृथ्वी पर लाया गया था। ऐसे में भगवान विष्णु के दाहिने पैर के अंगूठे से फल्गु का उद्धव को भी उद्दत किया गया है। इसे भगवान विष्णु की जल मूर्ति भी मानते है। इसलिए, फल्गु नदी में स्नान और पिंडदान का विशेष महत्व माना जाता है।

 

इन घाटों पर थी सबसे ज्यादा भीड़

तर्पण के बाद देवघाट, गजाधर घाट एवं विष्णुपद के बाहरी परिसर में पिंडदानियों की भीड़ थी। अलग-अलग स्थानों पर पिंडदान का कर्मकांड चल रहा था। पहला दिन होने के कारण भीड़ अधिक देखी है। सभी पिंडदानी पिंडदान के कर्मकांड के उपरांत विष्णुपद मंदिर में जा रहे थे।

यह सिलसिला दोपहर तक चलता रहा। भारी संख्या में पहुंचे पिंडदानी दर्शन बारी-बारी से कर रहे थे। दर्शन के बाद पिंडदानी अपने-अपेने आवास की ओर जा रहे थे।

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *