भारत लोक-कलाओं का देश है। अगल-अलग राज्यों में अलग-अलग कलाएं हैं। यही भारत की सबसे बड़ी विशेषता है। कला संरक्षण ही स्वरोजगार का माध्यम बन जाए, यह तो सोने पर सुहागा ही कहा जाएगा। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है दानापुर की रहने वाली माला गुप्ता ने।
माला गुप्ता ने नानी-दादी से सीखी राज्य की परंपरागत सुजनी कढाई को न सिर्फ स्वरोजगार से जोड़ा बल्कि उन्होंने अपने साथ तीन सौ महिलाओं को जोड़कर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाया है। सुजनी कला के प्रति माला का समर्पण देखकर राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी उनकी सराहना की। मुख्यमंत्री ने 2015 में माला गुप्ता को राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया था।

उन्होंने सुजनी कला का प्रशिक्षण उपेन्द्र महारथी संस्थान से भी लिया। माला का चयन राज्य सरकार ने अपने स्टार्टअप प्रोजेक्ट के लिए भी कर लिया है। इसके तहत उन्हें दस लाख रुपये प्रदान किए गए, जिससे उन्होंने राजधानी में अपना एक आउटलेट भी खोल रखा है।
सुजनी कला से बनी फोल्डर, झोला की डिमांड
इसके अलावा माला का बनाया उत्पाद खादी माल, बिहार संग्रहालय, बिहार इंपोरियम के अलावा देश के विभिन्न कला और हस्तशिल्प के दुकानों पर बिक रहा है। वर्तमान में यह कला पर्दे, डायरी, चादर, तकिया कवर और चित्रकला का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गई है। यही नहीं उनके सुजनी कला से तैयार फोल्डर, झोला और हैंडीक्राफ्ट तो अमेजन जैसी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध है, जहां से सुजनी कला से बनी चीजें दुनियाभर में पहुंच रही है।
महिलाओं को दे रही प्रशिक्षण
माला गुप्ता ने राज्य के विभिन्न गांव और शहरों में 300 से अधिक महिलाओं को रोजगार दिया है। ये महिलाएं राजधानी के दीघा, दानापुर, मनेर और दरभंगा में संगठन बनाकर कार्य कर रही हैं। उन्हें समय-समय पर प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इसके लिए मुंबई से डिजाइनरों को बुलाया जाता है।
2003 से कला संवारने में जुटी हैं माला
माला गुप्ता कहती हैं कि बचपन में नानी-दादी को सुजनी कला पर काम करते देखा था लेकिन उस दौरान इसकी इतनी बाजार में मांग नहीं थी। समय के बदलाव के साथ इसकी मांग बढ़ती गई। वर्ष 2003 से सुजनी कला पर उन्होंने काम करना शुरू किया। शुरू में तो शौकिए तौर पर इस कला को सीखा, लेकिन धीरे-धीरे बाजार में बढ़ती मांग को देखते हुए रोजगार का माध्यम बना लिया।
युवाओं की पसंद बनी सुजनी कला
माला आगे कहती हैं कि सबसे बड़ी बात है कि इस कला को युवा पीढ़ी काफी पसंद कर रही है। इसके अलावा विदेशों में बसे भारतीय इस कला को बढ़ावा देने के लिए आगे आ रहे हैं। यह हमारे लिए काफी गौरव की बात है।