अब ‘बड़का’ मोदी भी ‘छोटका’ मोदी को नजरअंदाज नहीं कर सकते

राजनीति

हर राज्य में एक सुशील मोदी होना चाहिए, लेकिन उससे कहीं ज्यादा जरुरी है हर पार्टी में एक सुशील मोदी का होना।

बेशक वो आज लालू को राजनीति संकट में डालने के लिए चर्चा में हैं, लेकिन उन्होंने खुद को उस राजनीतिक संकट से उबारा है, जो उनकी अपनी ही पार्टी ने उनके लिए पैदा कर दिया था। प्रदेश भाजपा में एक गुट सुशील मोदी के खिलाफ वर्षों से लड़ रहा है। नरेंद्र मोदी को लेकर नीतीश की नीति पर सुशील विरोधी गुट आक्रामक रहा । सुशील मोदी की पार्टी में पकड़ वही से कमजोर होती गयी। नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद पार्टी में सुशील मोदी का कद छोटा करने की मुहिम तेज हुई। ऐसा कहा जाने लगा कि वो नरेंद्र मोदी के गुडबुक में नहीं हैं। इसका सबूत बिहार विधानसभा चुनाव में उस वक्त दिखा जब सुशील मोदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाया गया। कहा तो यहां तक गया कि टिकट बंटवारे में भी छोटे मोदी की बात कम ही मानी गयी।

 

चुनाव में करारी हार का ठींकरा भी विरोधी गुट सुशील पर फोडऩे से पीछे नहीं रहा। विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता हो या प्रदेश भाजपा अध्यक्ष किसी के चयन में सुशील मोदी की भूमिका सिमित ही रही। सूत्रों की माने तो उन्हें बिहार से दिल्ली ले जाने की कोशिश भी की गयी, लेकिन केंद्रीय कैबिनेट में जगह की गारंटी नहीं मिलने पर वो राज्यसभा नहीं गये।

प्रदेश कार्यकारणी के गठन के बाद यह कहा जाने लगा कि प्रदेश संगठन से मोदी गुट की विदाई हो गयी। पार्टी के अंदर उनके घटते कद का उभार उस जब यूपी चुनाव में उनका नाम प्रचारकों में कहीं नहीं मिला। पार्टी के सबसे बड़े चेहरे को पार्टी के अंदर ही लगातार चुनौती मिल रही थी। विरोधी लगातार ताकतवर हो रहे थे। मोदी को हासिये पर जाने की बात कहनेवाले मुखर हो रहे थे। सुशील मोदी के लिए विकल्प बहुत सिमित थे।

 

मोदी ने उसी भोज को अपने मुहिम का हिस्सा बनाया, जिस भोज के बाद पार्टी में उनकी स्थिति बदली थी। कभी भाजपा के सामने से थाली खींचनेवाले नीतीश के निमंत्रण पर मुख्यमंत्री आवास जानेवाले मोदी पार्टी पर अपनी पकड़ दिखाने में सफल रहे। भोज में पार्टी के कई आला नेता शामिल नहीं हुए, लेकिन अधिकतर विधायकों के साथ मोदी का नीतीश के भोज में शामिल होना एक बड़ा संदेश था।

मोदी जानते थे कि बिहार में भाजपा के लिए लालू सबसे बड़ी चुनौती हैं। भाजपा हर हाल में लालू को घेरने की नीति बनायेगी। भाजपा नित्यानंद राय और पप्पू यादव के भरोसे लालू से निपटने की योजना तैयार कर रही थी कि पार्टी से इतर मोदी ने लालू के खिलाफ दस्तावेज एक एक कर निकालना शुरु कर दिया। पार्टी के पास समर्थन के अलावा एक ही रास्ता था कि इस मुहिम को तवज्जों न दिया जाये। जानकारों की माने तो पार्टी अगर इस मुहिम का हिस्सा होती, तो जो हमला मोदी करते रहे, वो नित्यानंद राय करते। उसका असर भी कुछ और होता। मोदी की निजी मुहिम होने के कारण ही शुरुआत में पार्टी ने इसे कोई तवज्जों नहीं दिया। यह पूरी तरह सुशील मोदी की निजी लड़ाई रही जो देखने में लालू के खिलाफ थी, लेकिन असली निशाना खुद की पार्टी के नेता ही थे। जैसे जैसे लालू घिरते गये वैसे वैसे सुशील मोदी का विरोधी गुट पार्टी में कमजोर होता गया। करीब एक माह बाद उनके इस मुहिम पर पार्टी का नेता बोला। इसके बावूजद लालू प्रसाद के खिलाफ इतने बड़े मुहिम में मोदी के पीछे पार्टी कभी नहीं दिखी। मोदी के साथ दो मोरचे पर लड़ाई लड़ते रहे। आयकर विभाग की छापेमारी के बाद भाजपा मोदी के पीछे खड़ी हो गयी।

भारतीय मीडिया ही नहीं, अपनी गिरती टीआरपी को लालू के बहाने बचाने का काम सुशील मोदी ने भी किया है। प्रदेश भाजपा में सुशील विरोधी खेमा गायब हो गया…एक बार फिर साबित हो गया सुशील मोदी मतलब बिहार भाजपा…अब नरेंद्र मोदी के लिए भी सुशील मोदी को नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा।

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