सिर्फ हरयाणा ही नहीं, राज्य के बेटियां भी ताकत आजमाने वाले खेल में चैंपियन बन रहीं हैं।
सभी की तरह पटना सिटी के भद्रघाट के किसान गौरीशंकर मेहता की बेटी सुधा को भी पड़ोसियों के ताने अक्सर सुनने को मिलते थे की लड़की जिम जाकर क्या करेगी। पढ़ाई-लिखाई तक ही लडकिया सही लगती हैं। सुधा ने इन बातों को अपनी ताकत बना लिया। अभावों से जूझते हुए दिन-रात मेहनत करती रही और पावर लिफ्टिंग में चैंपियन बनीं।
अपनी सफलता का श्रेय अपने पिता को देते हुए सुधा कहती हैं की पाप ने किसी की भी नहीं सुनी और मुझे कहा, ‘तुम ठान लो और एक दिन तुम इसी खेल में चैंपियन बनोगी।’
सुधा ने बताया की जब saal 2000 में झारखंड अलग हुआ तब बिहार की तरफ से पावर लिफ्टिंग में प्रतिनिधित्व करने वाला कोई खिलाड़ी नहीं था। उस वक्त सुधा के ही मोहल्ले में अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दीपाली नंदी रहती थीं। उन्होंने ही सुधा को ये कहते हुए प्रेरित किया की सुधा तुम्हारा शरीर पावर लिफ्टिंग के लिए परफेक्ट है, प्रैक्टिस करो।
वह प्रशिक्षण देने लगीं तो मोहल्ले वालों ने विरोध करना शुरू कर दिया। पर सुधा के माता-पिता ने सभी विरोधों को नजरअंदाज किया करते हुए सुधा का साथ दिया। पावर लिफ्टिंग के लायक शरीर को मजबूत बनाने के लिए सुधा के पास जरूरी डायट के लिए पैसे नहीं थे। फिर भी सुधा ने हार नहीं मानी और दूसरों के घरों में जाकर ट्यूशन पद्धति और अपनी प्रैक्टिस करती रही। उनकी मेहनत रंग लायी और 2002 में जूनियर नेशनल पावर लिफ्टिंग चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता।
2005 में दिल्ली जाकर सुधा ने कॉल सेंटर में नौकरी की। काम के बाद दिनभर प्रैक्टिस करती। खेल के प्रति उनके समर्पण का परिणाम है कि अपने 16 साल के कॅरियर में उन्हें अब तक सात अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में मेडल मिला है। राज्य सरकार ने 2010 में सुधा को सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के तौर पर पुरस्कार के रूप में एक लाख रुपये से सम्मानित किया।
सुधा अभी अभी राज्य सरकार के जल संसाधन विभाग में नौकरी कर रही हैं। सुधा ने 2012 में एक पावर लिफ्टर से शादी करने के बाद एक बेटे को जन्म दिया। लोगों ने कहा कि अब वो खेल नहीं पायेगी, तब पति के साथ से सुधा पावर लिफ्टिंग में पहले से अधिक दमदार तरीके से उभरीं।
जो मोहल्ले वाले पहले सुधा को ताना मारते और विरोध करते थे, आज उन्हें इस बात का गर्व होता है कि उनके मोहल्ले की लड़की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी है।