गरीबी की मार ने बिहार के इस लड़के को बना दिया एक सफल स्टार्टअप का मालिक

एक बिहारी सब पर भारी प्रेरणादायक

हमारी आज की कहानी एक निष्कलंक उदाहरण है कि कैसे कोई बाधाओं पर विजय पाने के लिए क्या कुछ नहीं कर सकता है। यह शख्स एक मिट्टी के घर में 22 लोगों के साथ संघर्ष करता था। मगर उसके कभी भी अपनी परिकल्पना को सीमित नहीं किया। औरंगाबाद, बिहार के अनुप राज ने एक बहुत ही प्रशंसनीय स्टार्ट-अप पी.एस. टेक केयर की नींव रख कर एक ऐसा ही उदाहरण पेश किया है।

इतिहास में स्नातक करने वाले अनुप के पिता रामप्रवेश प्रसाद, चेनेव गाँव के सबसे अधिक शिक्षित व्यक्ति थे। उनके पिता की तमन्ना एक शिक्षक बनने की थी। परंतु उन्हें नजदीक में काम न मिलने की वजह से अपने पैतृक खेतों में ही धान की खेती में करनी पड़ी। एक पिता जो स्वयं शिक्षा के महत्व को जानते थे उन्होंने अपने बच्चों की शिक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे। परंतु नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण वहाँ का एक मात्र प्राथमिक स्कूल भी बंद था।

तीन भाइयो में अनुप सबसे छोटे हैं। गाँव में ज्यादातर बच्चे खेती-बाड़ी में मदद करते या खेलने में समय व्यतीत करते। अनुप बताते हैं कि वे कंचे खेलने में तेज थे, उनके पास 1000 कंचे थे। अनुप के पिता ने अपने बच्चों को मूलभूत रुप से शिक्षित करने के लिए एक रास्ता निकाला। उनके पिता नजदीक के शहर रफिगंज जाते और वहाँ से पुरानी किताबें खरीद कर लाते और अनुप सहित सभी बच्चों को आधारभूत गणित और व्याकरण पढ़ाया करते थे।

जब उनके पिता ने उनके पढ़ने की उत्सुकता को अवलोकित किया तो उन्होंने जैन मिशिनरी स्कूल, रफिगंज में काम करने वाले अपने एक मित्र से अनुनय-विनय किया। 2002 में जब अनुप 10 साल के थे तो उनका नामांकन 5वीं कक्षा में हुआ। यद्यपि स्कूल व्यवस्था ने उनके गैर-जैन धर्मावलंबी होने के कारण दाखिले को अस्विकार कर दिया था परंतु गणित हल करने और व्याकरण के समक्ष की उनकी क्षमता के कारण उन्हें स्कूल में भरती कर लिया गया।

अनुप अब स्कूल जाने लगे थे और घर की खेती-बाड़ी में उनका अब कोई सहयोग नहीं था। अनुप की पढ़ाई के खर्चे का अचानक आया बोझ घर पर महसूस किया जाने लगा। मगर अनुप अपनी पढ़ाई की प्रतिभा में आगे बढ़ते गये और अपने परिवार को उनकी पढ़ाई के लिए निराश होने का अवसर नहीं दिया।

अगले वर्ष वे सीधे 7वीं कक्षा में दाखिले के लिए आवेदन किया। उन्होंने गणित की परिक्षा में 4था स्थान प्राप्त किया और उन्हें आसानी से दाखिला मिल गया। 11 वर्ष के अनुप तब से ही ट्यूशन देना शुरु कर दिया जिससे कि वे घर में कुछ सहयोग कर सकें। ट्यूशन पढ़ा कर वे लगभग 1000 रुपये उपार्जन करने लगे।

8 अगस्त 2006 को अनुप की जिन्दगी में बेहद दुखद मोड़ तब आया जब उनके पिता घर छोड़कर चले गये उन्होंने कोई चिठ्ठी या संदेश भी नहीं छोड़ा और कभी वापस नहीं लौटे। 10वीं के छात्र रहे अनुप इस घटना से बुरी तरह बिखर गये। उनकी माँ ने भी स्वयं को इस परिस्थिति के आगे असहाय पाया। वह दिन-रात रोती रहती और ईश्वर से अपने पति के लौटने की प्रार्थना करती रहती। कुछ समय बाद उनके दादा और रिश्तेदारों ने उनके परिवार की मदद करने से कदम पीछे हटा लिए।

अनुप अब तक समझ चुके थे कि उन्हें ही अपने घर की मदद करनी होगी। उन्होंने दोबारा से ट्यूशन पढ़ाना शुरु किया। अपने किताब के पैसे बचाने के लिए वे कभी-कभी भूखे रह कर सिर्फ पानी पी कर सो जाया करते। उन्होंने अपनी 10वीं बोर्ड परीक्षा के लिए कड़ी मेहनत के साथ तैयारी शुरु कर दी। उनके दोस्त और शिक्षक ने उनकी पढ़ाई में मदद किया। बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की 10वीं परीक्षा में उन्होंने 84.8% अंकों के साथ राज्य में 15वाँ स्थान प्राप्त किया। उन्हें अब कुछ उम्मीद की किरण नजर आने लगी। उन्होंने गया काॅलेज में दाखिला लिया जो उनके गाँव से 40 किलोमीटर दूर था। काॅलेज के बाद वे काॅलेज का शुल्क और अन्य घरेलू जरुरतों के लिए ट्यूशन दिया करते।

गया में उन्होंने इंजीनियरिंग के बारे में काफी कुछ जाना। पर उनके पास जेईई की तैयारी के लिए कोचिंग जाने के पैसे नहीं थे। अतः उन्होंने स्वयं तैयारी करने का निश्चय किया। परंतु हिन्दी माध्यम से पढ़े होने के कारण उन्हें अँग्रेजी में लिखे आधे प्रश्न तो समझ में ही नहीं आए और वे परीक्षा में पिछड़ गये। रसायन के भाग में उन्हें मात्र 3 अंक ही मिले। 12वीं परिक्षा पास करने के बाद वे मुख्यमंत्री श्री नीतिश कुमार जी द्वारा चलाये गये जनता दरबार में मदद की गुहार ले कर पहूँचे। बताते चलें कि 12वीं की परिक्षा में अनुप ने पूरे राज्य में 80.81% अंको के साथ 11वां स्थान प्राप्त किया।

मुख्यमंत्री कार्यालय के एक कर्मचारी ने अनुप को सुपर-30 के संचालक अानंद कुमार से मिलने की सलाह दी। सुपर-30 एक बहुत ही महत्त्वाकांक्षी और नवप्रवर्तनशील शैक्षणिक कार्यक्रम है, जो आर्थिक रुप से पिछड़े 30 प्रतिभावान छात्रों को चुन कर उन्हें भारत के प्रतिष्ठित संस्था ‘भारतीय प्रौद्योगिकी संस्था’ (IIT) के लिए तैयार करते हैं। अनुप के शैक्षणिक प्रदर्शन ने आनंद कुमार को उसे सुपर-30 में शामिल करने को विवश कर दिया।

2010 की जेईई परीक्षा में अनुप शामिल हुए और उन्होंने अखिल भारतीय स्तर पर 997वां स्थान हासिल किया। अपने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए उन्होंने आई.आई.टी. मुंबई जाने का निश्चय किया। वे उद्यमकर्ता बनना चाहते थे और खुद से कुछ बड़ा करना चाहते थे। वे इंटरनेट से कुछ-कुछ अध्ययन करने लगे और स्टार्ट-अप के लिए वेबसाईटस और प्रोग्राम तैयार करने लगे। वे एक प्रोजेक्ट के लिए 5000 से 10,000 तक कमाने लगे और फलतः 60,000 तक उनकी कमाई होने लगी। इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष अलुमानेक्सस (AlumNexus) से ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षण के लिए वे दुबई गये। 2014 में उन्होंने क्विकर.काॅम में बतौर एसोसिएट साॅफ्टवेयर इंजीनियर ज्वाइन किया। यहाँ उनकी तनख्वाह 1,00,000 रुपये महीने की थी, जो उनके परिवार के लिए अविश्वसनीय था। यहाँ तक कि अपने दादा जी को विश्वास दिलाने के लिए अनुप को अपना बैंक पासबुक दिखाना पड़ा।

2015 में अनुप ने अपने तीन दोस्त प्रतिक चिंचोले, शिरिन शिंदे और राहिल मोमिन के साथ मिलकर PSTakeCare नामक एक स्वास्थ्य देखभाल का स्टार्ट-अप किया।

PSTakeCare त्रि-आयामी (3D) सुचीकरण पद्धति से मरीजों को उपयुक्त डाॅक्टर, अस्पताल, अन्य सेवाओं जैसी स्वास्थ्य सेवाओं की खोज में मदद करता है। इससे स्वास्थ्य की देखभाल की सेवाओं को बस एक क्लिक करने जितना आसान बना दिया है। अपने शुरुआत से अबतक 8,000 लोग वेबसाईट का लाभ प्राप्त कर चुके और दिनो-दिन यह आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। अनुप के इस स्टार्ट-अप के साथ 40 कर्मचारी काम कर रहे हैं। उनका मानना है कि कठिन परिस्थियों में भी स्वयं पर विश्वास रखना चाहिए।

“गरीब जन्म लेना कोई गुनाह नहीं होता मगर गरीब मरना गुनाह है।” विश्व के सबसे अमीर और माइक्रोसाॅफ्ट के अध्यक्ष बिल गेट्स का यह कथन बेहद प्रेरणादायक है। भले परिस्थिति कितनी भी विकट क्यों न हो एक दृढ़निश्चयी व्यक्ति अपने मेहनत और संकल्प से परिस्थितियों को बदल कर अनुकूल कर सकता है। अनुप राज की यह जीवन यात्रा मेहनत और कृतसंकल्प से विषम परिस्थिति से निकल कर अपने सपने को पूरा करने की एक प्रेरणा है।

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