गरीबी और मुफलिसी में बचपन के दिन काटने वाले लालू यादव के 22 ठिकानों पर मंगलवार को आयकर विभाग ने छापा मारा है। उनपर 1000 करोड़ रुपए की बेनामी संपत्ति रखने का आरोप है।
एक वक्त ऐसा भी था जब लालू स्कूल की पढ़ाई और दो वक्त की रोटी के लिए रिक्शा चलाते थे। लालू का जन्म गोपालगंज जिले के फुलवरिया गांव में हुआ था। उन्होंने माड़ीपुर गांव के स्कूल से पढ़ाई शुरू की थी। वह काठ की पटरी और भट्ठा के साथ स्कूल जाते थे और भंगरइया घास से पटरी पर लिखा मिटाते थे।
लालू के पास स्कूल फीस देने के लिए पैसे नहीं थे। वह हर शनिवार को रस्सी-पगहा और गुड़-चावल फीस के रूप में टीचर को देते थे। स्कूल में घंटी नहीं थी। छत के छेद से आने वाले धूप की लकीरों से टिफिन और छुट्टी तय होता था। गांव में लालू लोगों को रिझाने के लिए सोरठी-बृजभार गाते थे।
चाचा यदुनन्दन चौधरी अपने साला (जिसे लालू ठग मामा कहते थे) के बुलावे पर पटना गए। उन्होंने लालू के भाई मुकुन्द चौधरी को भी पटना बुला लिया। रोज 11 आना मजूरी करने वाले भाई के साथ लालू पटना आए। पटना में लालू का परिवार ‘चौधरी’ से ‘यादव’ बन गया। 5वीं क्लास में लालू का नाम शेखपुरा मोड़ के मिडिल स्कूल में लिखाया गया था। वहां शेखपुरा गांव के ही कैलाशपति जी और मुंशी मास्टर से एक साल पढ़े, फिर बीएमपी-5 के मिडिल स्कूल में छठी में नाम लिखाया।
लालू को बचपन से ही फुटबॉल खेलने का शौक था। वह स्कूल में फुटबॉल और नाटक खेलते थे। लालू का परिवार वेटरनरी क्वार्टर के 10/10 के रूम में रहता था। घर में शौचालय नहीं था। खेत में जाते थे। भाई की कमाई 45 रुपया महीना हुआ तो लालू का एडमिशन मिलर हाई स्कूल में 8वीं क्लास में कराया गया।
मिलर स्कूल में लालू एनसीसी में शामिल हुए और फुटबॉल खेलने लगे। जल्द ही वह फुटबॉलर लीडर बन गए। लालू के परिवार के पास लालटेन के लिए केरोसिन तेल खरीदने का पैसा नहीं था। रूम में अंधेरा होने के चलते लालू वेटनरी कॉलेज के बरामदे में पढ़ते थे।