बिहार के गया जिले को मोक्ष की भूमि माना जाता है. गयाजी में सच्चे मन से पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. उन्हें सीधे स्वर्ग में स्थान मिलता है. मान्यता है कि यहां अगर कुछ भी ना मिले तो लोग नदी के बालू से भी पिंडदान दे सकते हैं. पिंडदान से पूर्वजों के मोक्ष की कामना पूरी हो जाती है. मान्यताओं के अनुसार गया में भगवान राम लक्ष्मण और सीता ने भी बालू से पिंडदान किया था, जिसके बाद राजा दशरथ की मोक्ष की प्राप्ति हुई थी. तब से यहां बालू से पिंडदान करने का महत्व बढ़ गया.
गया में लगने वाले विश्वविख्यात पितृपक्ष मेला की शुरुआत 28 सितंबर से हो रही हैं. इस बार पितृपक्ष मेला 14 अक्टूबर तक चलेगा. पितरों की मुक्ति के लिए इन दिनों पिंडदान, तर्पण विधि और श्राद्ध कर्म किए जाते हैं. पितृपक्ष में परलोक गए पूर्वजों को पृथ्वी पर अपने परिवार से लोगों से मिलने का अवसर प्राप्त होता है और वह पिंडदान श्राद्ध कर्म करने की इच्छा से अपनी संतान के पास रहते हैं.
हर साल आते हैं लाखों तीर्थयात्री
यूं तो पूरे देशभर में 50 से अधिक स्थानों को पिंड दान के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. लेकिन, बिहार का गया जिला सर्वोपरि है. गया में 15 दिनों के अंदर में देश के विभिन्न राज्यों से करीब 8 से 10 लाख तीर्थयात्री आते हैं. हिंदू धर्म के अनुसार जब किसी की किसी कारण मृत्यु हो जाती है तो उनका आत्मा भटकती रहती है. इस आत्मा को शांति के लिए लोग पिंडदान करते हैं. श्राद्ध कर्म करना पितरों की आत्मा की शांति के लिए महत्वपूर्ण माना गया है. आत्मा की शांति के बाद पूर्वज सिद्धेश्वर लोग जाते हैं और वहां से अपने परिवार को कल्याण का आशीर्वाद देते हैं.
गया में पिंडदान का विशेष महत्व
गया को मोक्ष की स्थली भी कहा जाता है. गया में पिंडदान करने से आत्मा के मोक्ष की प्राप्ति होती है. बताया जाता है कि गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृदेव के रूप में निवास करते हैं और गया में श्राद्ध कर्म और तर्पण विधि करने से कुछ शेष नहीं रह जाता और व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है. गया में फल्गु नदी के तट पर भगवान राम और माता सीता ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया था. इसके बाद कौरवों ने भी इसी स्थान पर श्राद्धकर्म किया था.
बालू से पिंडदान करने के पीछे का क्या है रहस्य
बताया जाता है कि पितृपक्ष के दौरान भगवान राम माता सीता और लक्ष्मण पिंडदान करने के लिए गया जी पहुंचे थे. श्राद्ध करने के लिए कुछ सामग्री लेने राम और लक्ष्मण कहीं चले गए थे. तभी आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का समय निकला जा रहा है. तभी माता-सीता को राजा दशरथ ने दर्शन दिए. पिंडदान के लिए कहा इसके बाद माता सीता ने फल्गु नदी, वट वृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर फल्गु नदी के किनारे पिंडदान कर दिया. पिंडदान से राजा दशरथ की आत्मा को शांति मिली और आशीर्वाद देकर मोक्ष के लिए चले गए. तब से मान्यता है कि यहां बालू का पिंडदान देने के परंपरा शुरू हुई.