राजस्थान की पहाड़ी पर बसा माउंट आबू राज्य का एकमात्र पर्वतीय गंतव्य माना जाता है। माउंट आबू अरावली पहाड़ियों का सबसे ऊंचा शिखर है, जो हिन्दुओं के साथ-साथ जैन समुदाय के लोगों का भी तीर्थस्थान है। इसके अलावा ग्रीष्णकाल के दौरान यह एकमात्र हिल स्टेशन शहरवासियों के लिए मुख्य स्थल बना बन जाता है। जंगली वनस्पतियों के बीच यह पहाड़ी क्षेत्र राजस्थान की तपती गर्मी के बीच आराम देने का काम करता है। वैसे माउंट आबू का जिक्र हमने पिछले लेखों में भी किया है, लेकिन आज हम इस स्थान के एक खास मंदिर के बारे में आपको बताएंगे, जहां देवों के देव महादेव की भव्य पूजा कुछ अलग अंदाज में की जाती है, जानिए इसके पीछे की पूरी कहानी।
माउंट आबू का अचलगढ़
इस बात को शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि माउंट आबू जैनों के साथ-साथ हिन्दुओं के भी आस्था का मुख्य केंद्र माना जाता है। इस पर्वतीय क्षेत्र में अचलगढ़ नाम का स्थान है जहां भगवान शिव का अद्भुत मंदिर स्थापित है। अभी तक आपने भोलेनाथ की प्रतिमा और शिवलिंग की पूजा होते ही सुना होगा, लेकिन इस अद्भुत मंदिर में शिवजी के अंगुठे की पूजा की जाती है। आगे हमारे साथ जानिए इस मंदिर से जुड़े और भी कई दिलचस्प तथ्य।
क्यों होती है अंगूठे की पूजा ?
जानकारों का मानना है अचलेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव के अंगूठे के निशान मौजूद है, जिसे भगवान का प्रतिक मान कर पूजा जाता है। इसके अलावा यहां भगवान शिव को विशेष जलाभिषेक भी किया जाता है। स्थानीय निवासियों के अनुसार यह जल बहुत ही खास होता है जो भगवान शिव को चढ़ाया जाता है। यहां के धार्मिक महत्व को देखते हुए माउंटआबू को अर्धकाशी का दर्जा भी प्राप्त है। बता दें कि यहां भोलेनाथ के 108 छोटे-बड़े मंदिर मौजूद हैं।आगे जानिए मंदिर से जुड़ा पौराणिक महत्व।
भगवान शिव देते हैं दर्शन
स्कंद पुराण (अर्बुद खंड) के अनुसार भगवान शिव और विष्णु अर्बुद पर्वत की सैर करते हैं। इसलिए आपकों यहां भोलेनाथ की पूजा करने वाले साधु-संत इन पहाड़ियों में जरूर दिख जाएंगे। माना जाता है कि भगवान शिव माउंट आबू की गुफाओं में आज भी निवास करते हैं। और जिस भक्त की प्रभुभक्ति से भोलेनाथ प्रसन्न हो जाते हैं उन्हें साक्षात दर्शन देते हैं। भगवान शिव को समर्पित अचलेश्वर महादेव मंदिर से हिन्दू लोगों की गहरी आस्था जुड़ी है। इसलिए यहां सोमवार और खास मौको पर श्रद्धालुओं का भारी जमावड़ा लगता है।
भगवान शिव के इस भव्य मंदिर से कई पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हैं। माना जाता है कि शिवरात्रि और सोमवार जैसे खास अवसरों पर सच्चे मन से मांगी गई मुराद अवश्य पूरी होती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार यहां के अर्बुद पर्वत का नंदीवर्धन अपनी जगह से अस्थिर हो गया था जिससे दूर कैलाश पर्वत पर बैठे शिवजी की तपस्या बाधित हो गई थी, इस पर्वत पर नदी गाय भी थी। इसलिए पर्वत और नंदी को बचाने के लिए भगावान शिव ने अपने अंगूठे से इस हिलते पर्वत को अपनी जगह पर बैठा दिया था। इसलिए यहां भगवान शिव की पूजा उनके अंगुठे के रूप में होती है।
कैसे करें प्रवेश
अचलेश्वर महादेव मंदिर माउंट आबू पर स्थित है, जिसके लिए आपको पहले माउंट आबू पहुंचना होगा। यहां आप तीनों मार्गों से पहुंच सकते हैं, यहां का नजदीकी हवाईअड्डा उदयपुर (डाबोक एयरपोर्ट) में स्थित है। रेल मार्ग के लिए आप मोरथला रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं। इसके अलावा आप यहां सड़क मार्गों से भी पहुंच सकते हैं। बेहतर सड़क मार्गों द्वारा माउंट आबू राज्य के बड़े शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।यहां मौजूद हैं दुर्योधन से लेकर इन सभी पात्रों के मंदिर