किले अपने गौरवशाली इतिहास की गाथा आज भी बयान करते हैं। ऐसा ही एक ऐतिहासिक किला बिहार के रोहतास जिले के पास अफगान शासक शेरशाह सूरी का है, जिसे ‘शेरगढ़ का किला’ कहा जाता है। 500 साल पुराने इस इस किले में सैकड़ों सुरंग और तहखाने हैं। इस किले के तहखाने इतने बड़े हैं कि उनमें एक साथ 10 हजार लोग आ सकते हैं। माना जाता है कि यहां आज भी शेरशाह सूरी का शाही खजाना दबा हुआ है।
शेरशाह ने इसे दुश्मनों से खुद की सुरक्षा के लिए बनवाया था। लेकिन मुगल शासक हुमायूं ने शेरशाह सूरी के हजारों सैनिकों के इसी तहखाने में फंसा कर मार डाला था। इस किले का इतिहास कहीं भी अच्छे से नहीं मिलता, लेकिन कुछ इतिहासकारों ने बताया कि इस किले पर पहले राजपूत राजा शाहबाद का राज था। शाहबाद का मजार पास ही सासाराम शहर में है।
कहा जाता है कि इसके बाद ये किला अफगान शासक शेरशाह सूरी के हाथ लगा। ये किला सासाराम से 32 किमी दूर स्थित है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार ये शेरशाह के अच्छे मित्र खरवार राजा गजपती ने उन्हें तोहफे में दिया था। ये किला 1540 से 1545 के बीच बना है और 1576 में ये मुगलों के हाथ में आया।
ऐसा भी कहा जाता है कि रोहतास किले पर कब्जा करने के बाद शेरशाह की इस किले पर नजर पड़ी और इसे भी शेरशाह ने अपने अधीन कर लिया। इसे नवाबगढ़ भी कहा जाता था।
बिहार के सासाराम में कैमूर की पहाड़ियों पर मौजूद ये किला इस तरह बनाया गया है कि बाहर से किसी को नहीं दिखता। ये चारों तरफ से ऊंची दीवारों से घिरा है।
इस किले के एक तरफ दुर्गावती नदी है, बाकी तरफ से ये जंगलों से घिरा हुआ है। यहां सुरंगों का जाल बिछा है।
यहां के तहखाने इतने बड़े हैं कि उनमें 10 हजार तक सैनिक आ सकते हैं। शेरशाह ने ऐसा किला अपने दुश्मनों से बचने और सुरक्षित रहने के लिए बनवाया था।