बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के झटके से विपक्ष अभी उबर भी नहीं पाया था कि एनसीपी अध्यक्ष Sharad Pawar ने दूसरा झटका दे दिया.
पवार की पार्टी एनसीपी ने 11 अगस्त को बीजेपी सरकार के खिलाफ रणनीति बनाने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा बुलाई गई बैठक का बहिष्कार कर दिया . एनसीपी ने बैठक का बहिष्कार करने के लिए कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहराया.
एनसीपी ने आरोप लगाया कि गुजरात राज्य सभा चुनाव में अहमद पटेल को पार्टी के एक विधायक द्वारा वोट दिए जाने का बावजूद कांग्रेस यह गलत सूचना फैला रही है कि एनसीपी ने वोट नहीं दिया. कांग्रेस के इस व्यवहार से पार्टी के नेतृत्व को दुःख और नाराज़गी दोनों हुई है.
Sharad Pawar के विपक्ष की बैठक में न आने ने कई सवाल खड़ा कर दिया है. क्या विपक्ष की एकता खतरे में है? क्या मोदी के खिलाफ 2019 के लिए बन रहे विपक्षी मोर्चे की हवा वक़्त से पहले निकल गई है?
ये सवाल इसलिए क्योंकि नीतीश के बाद अगर पवार भी कांग्रेस का साथ छोड़ते हैं तो मोदी के लिए 2019 की लड़ाई बेहद आसान हो जायेगी. बिखरा विपक्ष मोदी और शाह का मुकाबला आखिर कैसे कर पायेगा? ये पहली बार नहीं है जब एनसीपी ने कांग्रेस को अपनी नाराज़गी दिखाई है.
22 जून की विपक्ष की बैठक में भी पवार नहीं आ रहे थे और काफी मान-मनौवल के बाद बैठक में शामिल होने के लिए राज़ी हुए. अहमद पटेल और ग़ुलाम नबी आजाद को पवार के घर जाकर उन्हें मनाना पड़ा. पवार एक बार फिर नाराज़ हैं, इस बार गुजरात को लेकर पार्टी का दावा है कि एक एनसीपी विधायक ने वोट दिया था जिसकी वजह से ही पटेल की जीत हुई.
2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से ही पवार और प्रधानमंत्री मोदी की नज़दीकियों के कयास लगाये जाते रहे हैं. मोदी पीएम बनने के बाद न सिर्फ पवार के घर जा चुके हैं बल्कि सार्वजनिक मंच से ये भी कहा कि पवार ने उनकी उंगली पकड़ के शासन करना सिखाया.
मोदी और Sharad Pawar की सार्वजनिक मंच पर अब तक तीन बार मुलाक़ात हो चुकी है. हालांकि पवार एनडीए के करीब आ रहे हैं ये कहना ज़ल्दबाज़ी होगी लेकिन इन मुलाकातों ने यूपीए और खासकर सोनिया गांधी की मुश्किल तो बढ़ा ही दी है.