हिंदू धर्म में शनिदेव को ग्रह और देवता दोनों ही रूपों में पूजा जाता है। शनिदेव को दण्ड देने वाला देव माना जाता है। परंतु शनि केवल मनुष्य के कर्मों का फल उसे प्रदान करते हैं। जिस प्रकार बुरे कर्म करने पर शनिदेव राजा को रंक बना सकते हैं, ठीक उसके विपरीत रंक को राजा भी बनाते हैं। यदि किसी की कुंडली में शनि की स्थिति शुभ फल देने वाली हो तो वो व्यक्ति जीवन में बड़ी-बड़ी सफलताएं हासिल कर सकता है।
भगवान शनि के माता-पिता कौन हैं? उनका जन्म कहां हुआ? उन्हें किस तरह प्रसन्न किया जा सकता है? ऐसे कई सवाल श्रद्धालुओं के मन में आते होंगे। आज इस स्टोरी में हम आापको शनिदेव से जुड़ी ऐसी ही रोचक जानकारी देने वाले हैं। तो चलिए बिना किसी देरी के आपको ले चलते हैं ग्रंथों की ऐसी दुनिया में जहां आप दंडाधिकारी शनिदेव को और बेहतर तरीके से जान पाएंगे। जानकारी पसंद आए तो दूसरों के साथ भी शेयर करें।
सूर्य के पुत्र हैं शनि
शनिदेव, भगवान सूर्य और देवी छाया के पुत्र हैं। मृत्यु के देवता यमराज उनके भाई और पवित्र नदी यमुना उनकी बहन हैं। यही कारण है यमुना नदी में स्नान करने पर और उसकी पूजा करने पर शनिदेव प्रसन्न होते हैं।
किस रंग के हैं भगवान?
शास्त्रों के अनुसार, भगवान शनि का रंग कृष्ण या श्याम वर्ण का है। सरल शब्दों में कहें तो वे काले रंग के हैं।
शिव को बनाया गुरु
शनिदेव ने भगवान शिव को अपना गुरु बनाया था। शिव का कठोर तप करने पर उन्हें अपार शक्तियां और दंडाधिकारी का पद प्राप्त हुआ।
कहां है जन्म स्थान
ग्रंथों के अनुसार, शनिदेव का जन्म सौराष्ट्र राज्य के शिंगणापुर में हुआ था। इस जगह को शनि का सबसे जागृत स्थान माना जाता है। यहां शनिदेव की पूजा करने पर उनके प्रकोप से मुक्ति मिल सकती है।
अनेक नाम
ग्रंथों में शनिदेव के अनेक नाम बताए गए हैं। उन्हें कोणस्थ, पिप्पलाश्रय, सौरि, शनैश्चर, कृष्ण, रोद्रान्तक, मंद, पिंगल, बभ्रु आदि नामों से भी जाना जाता है।
इनकी पूजा पर होते हैं प्रसन्न
हनुमानजी, भगवान भैरव, बुध और राहु, शनिदेव के मित्र माने जाते हैं। इनकी पूजा-अर्चना करने पर भी शनि महाराज भक्त पर प्रसन्न होते हैं।
इन क्षेत्रों के स्वामी हैं शनि
जिन लोगों पर शनिदेव की विशेष कृपा हो या जिनकी कुंडली में शनि शुभ फल देने वाले हो उन्हें अध्यात्म, राजनीति, लोहे, दवाइयां और कानून संबंधी कामों में बड़ी सफलता मिल सकती है।
इन वस्तुओं का करें दान
काले कपड़े, काला तिल, उड़द, लोहे, खट्टे पदार्थ और तेल शनिदेव को प्रिय माने जाते हैं। ये वस्तुएं भगवान को चढ़ाने पर या इनका दान करने पर वे प्रसन्न होते हैं।
शनि का रत्न
नीलम शनिदेव का रत्न माना जाता है। शनि को अनुकूल करने के लिये नीलम रत्न धारण करना अच्छा होता है। हालांकि इसे धारण करने से पहले किसी ज्योतिष की सलाह अवश्य लेनी चाहिए।
अशुभ शनि से मिल सकते हैं रोग
शनि के अशुभ होने पर डायबिटीज, गुर्दा रोग, त्वचा रोग, मानसिक रोग जैसी दिक्कतें हो सकती हैं। शनिदेव की पूजा करने और उनसे संबंधित वस्तुओं का दान करने पर इन रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है।