आज है सावन का पहला मंगला गौरी व्रत

आस्था

25 जुलाई से ही सावन के महीने की शुरुआत हो चुकी है. आज सावन का पहला मंगला गौरी व्रत है. भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने के लिए सावन का महीना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. इस पूरे महीने में महादेव के भक्त उनकी पूजा करते हैं और उन्हें जल चढ़ाते हैं.

माना जाता है की सावन सोमवार के दिन भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. जिस तरह सावन के सोमवार पर भगवान शिव का पूजन किया जाता है, उसी तरह मंगलवार के दिन मां गौरी के पूजन का महत्त्व है. सावन माह के मंगलवारों पर मां गौरी का पूजन विशेष फलदायी बताया गया है. इस व्रत को करने वाले के वैवाहिक जीवन की हर समस्या खत्म होती है. जो लोग संतान सुख चाहते हैं, उन्हें संतान सुख प्राप्त होता है. ये व्रत सुहागिनें रखती हैं क्योंकि इसे अखंड सौभाग्य देने वाला व्रत कहा गया है.

कहा जाता है कि यदि किसी के वैवाहिक जीवन में कोई समस्या हो रही हो या विवाह में कोई अड़चन आ रही हो या फिर संतान सुख प्राप्त न हो रहा हो तो उसे मंगला गौरी का व्रत करना चाहिए. मंगला गौरी का व्रत सावन माह मंगलवार के दिन रखना चाहिए और इस दिन माता पार्वती की पूजा करनी चाहिए. कल सावन का पहला मंगलवार पड़ रहा है.

इस व्रत को ज्यादातर महिलाएं रखती हैं. मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है. साथ ही उनके पति को दीर्घायु मिलती है. यदि नव विवाहित स्त्री इस व्रत को रखती हैं तो उनका पूरा वैवाहिक जीवन अच्छे से गुजरता है. वहीं ​जिन लड़कियों को मनचाहा वर न मिल पा रहा हो, उनको भी मंगला गौरी का व्रत रखना चाहिए और मां पार्वती की पूजा करनी चाहिए. सावन के महीने में ही माता पार्वती की तपस्या से महादेव प्रसन्न हुए थे और उनसे विवा​ह के लिए राजी हो गए थे. कहते हैं कि अगर कोई कुंवारी लड़की इस दिन मां पार्वती की पूजा कर उनसे सुयोग्य वर की कामना करती है, तो माता उस कामना को जरूर पूरा करती हैं. मान्यता है कि इस व्रत को शुरू करने के बाद कम से कम पांच साल तक रखा जाता है. हर साल सावन में 4 या 5 मंगलवार के व्रत होते हैं. आखिरी व्रत वाले दिन उद्यापन किया जाता है. आइए आपको बताते हैं इस दिन आप मंगला गौरी की पूजा कैसे कर सकते हैं.

मंगली गौरी व्रत पूजन विधि

  • सावन महीने के प्रत्येक मंगलवार को सुबह सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए.
  • उठकर स्नान कर नए वस्त्र पहनें.
  • चौकी पर आधे हिस्से में सफेद कपड़ा बिछाएं और आधे हिस्से में लाल कपड़ा बिछाएं.
  • सफेद वाले हिस्से में चावल के नौ छोटे ढेर बनाकर नवग्रह तैयार करें. वहीं लाल हिस्से में गेहूं के सोलह ढेर बनाएं.
  • इसके बाद चौकी पर अलग स्थान पर थोड़े से चावल बिछाकर पान का पत्ता रखें. पान पर स्वास्तिक बनाएं और गणपति बप्पा को विराजमान करें.
  • इसके बाद गणपति जी की और नवग्रह का रोली, चावल, पुष्प, धूप से विधिवत पूजन करें. गेहूं की ढेरियों का भी पूजन करें.
  • इसके बाद एक थाली में मिट्टी से माता मंगला गौरी की प्रतिमा बनाएं.
  • इसे चौकी पर स्थापित करें. हाथ में जल, अक्षत और पुष्प लेकर व्रत का संकल्प लें और अपनी मनोकामना को कहकर उसे पूरा करने की मातारानी से विनती करें.
  • इसके बाद मातारानी को पंचामृत से स्नान कराकर वस्त्र पहनाएं.
  • माता पार्वती को सोलह लड्डू, पान, फल, फूल, लौंग, इलायची और 16 श्रंगार का सामान चढ़ाएं.
  • मां के सामने 16 बत्तियों वाला एक दीपक जलाएं या 16 अलग-अलग दीपक जलाएं.
  • इसके बाद मंगला गौरी व्रत की कथा पढ़ें और मां की आरती गाएं.
  • पूजा समाप्त होने पर सभी वस्तुएं ब्राह्मण को दान कर दें.
  • व्रत चाहे निर्जला रखें या फलाहार लेकिन कोशिश करें कि नमक का सेवन बिल्कुल न करें.
  • शाम को अपना व्रत खोल दें.

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