सवा सौ साल पहले सूर्य के अध्ययन के लिए डुमरांव में जुटे थे खगोल विज्ञानी, अमेरिका-ब्रिटेन-जर्मनी से आया था दल

खबरें बिहार की जानकारी

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी (इसरो) ने चंद्रमा और सूर्य को लक्ष्य करते हुए लगातार दो मिशन लॉन्च कर लोगों में खगोल विज्ञान के प्रति जिज्ञासा बढ़ा दी है।

हर व्यक्ति सूर्य और चंद्रमा के बारे में अधिक से अधिक जानना चाहता है। ऐसी स्थिति में लगभग सवा सौ साल पहले का खगोलीय घटनाक्रम प्रासंगिक हो उठा है, जब विश्व के कई देशों के खगोल विज्ञानी बक्सर जिले के डुमरांव में जुटे थे।

18 जनवरी 1898 को 99 मिनट के पूर्ण सूर्य ग्रहण की मध्य रेखा यहां से गुजर रही थी, अन्य सकारात्मक स्थितियां भी थीं, इस कारण अध्ययन के लिए यहां अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी के विज्ञानियों के दल आए थे।

एक टीम सर्वे ऑफ इंडिया की भी थी। जेसुइट फादर्स आफ वेस्टर्न बंगाल मिशन की एक टीम भी यहां आई थी। इस टीम ने पूरे घटनाक्रम पर एक रिपोर्ट तैयार की थी, जो बाद में 200 पेज की पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुई थी।

इसकी प्रति अमेरिका की कर्नेल यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में सुरक्षित है। विज्ञानियों का मानना था कि इस सूर्य ग्रहण के अध्ययन से सूखा, जलवायु परिवर्तन, गेहूं का उत्पादन और जल स्रोतों से जुड़े विषयों को समझने में मदद मिलेगी। इस सूर्य ग्रहण के बाद ही विज्ञान की एक नई शाखा एस्ट्रोफिजिक्स का जन्म हुआ था।

इन कारणों से चुना गया डुमरांव

इस ग्रहण की मध्य रेखा तो भारत के कई क्षेत्रों से होकर गुजर रही थी, लेकिन विज्ञानियों ने डुमरांव को विशेष तौर पर चुना। इसके पीछे कई कारण थे।

डुमरांव में मौसम साफ रहने की संभावना थी और उम्मीद थी कि ग्रहण के दौरान चंद्रमा, मंगल और बुध को भी देखने का अवसर मिलेगा।

एक और बड़ा कारण था, डुमरांव रियासत की महारानी का आतिथ्य सत्कार। राज परिवार के प्रबंधक सी फाक्स ने विज्ञानियों के लिए जरूरी इंतजाम करने में अग्रणी भूमिका निभाई।

डुमरांव में रेलवे स्टेशन का होना भी था एक कारण

डुमरांव में रेलवे स्टेशन होना और इसका दिल्ली-हावड़ा मुख्य रेल लाइन से जुड़ा होना भी एक कारण था। विज्ञानियों का दल तब डुमरांव रेलवे स्टेशन से सटे राज परिवार के भोजपुर बंगला में ठहरा था, जहां अब उनके वारिस रहते हैं।

डुमरांव राज के वंशज चंद्रविजय सिंह बताते हैं कि तब महारानी बेनी कुंवरी थीं। उनके पति राधा प्रसाद सिंह थे।

क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य, औद्योगिक विकास और वैज्ञानिक शोध को बढ़ावा देने का कोई अवसर डुमरांव रियासत ने हाथ से जाने नहीं दिया। इसके उदाहरण आज भी अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों के रूप में देखे जा सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *