आज सावन की पहली सोमवारी है। आज झारखंड प्रसिद्ध जिले देवघर में वैद्यनाथ मंदिर में दुनिया भर से शिव भक्त जल चढ़ाने आते हैं।
अतिपावन तीर्थ होने के कारण इसे वैद्यनाथ धाम भी कहा जाता है। जहां ये मंदिर है, उसे देवघर कहते हैं। इसका मतलब होता है, ‘देवताओं का घर’।
ऐसा कहा जाता है कि रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। तपस्या से खुश होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने रावण से वर मांगने को कहा। रावण ने कहा कि भगवान आप मेरे देश में बस जाइये।
भगवान शिव ने उसे एक ज्योतिर्लिंग दिया और कहा कि इसे तुम जहां भी जमीन पर रखोगे, ये वहीं स्थापित हो जाएगा। रावण शिवलिंग लेकर चल पड़ा, अचानक रास्ते में एक चिता भूमि आने पर उसे लघुशंका महसूस हुई।
रावण एक ग्वाले को वो लिंग थमा कर खुद लघुशंका दूर करने चला गया। ग्वाले ने रावण के जाने के बाद उसे भारी मान कर वहीं जमीन पर रख दिया। फिर शिव जी के कहे अनुसार वो शिवलिंग वहीं पर सदा के लिए स्थापित होकर रह गया।रावण ने जब वापस आकर देखा, तो पछता कर और मूर्ति पर अंगूठा गड़ाकर लंका चला गया।
फिर सारे देवताओं ने उस लिंग की पूजा-अर्चना की। इस पावन भूमि पर वैद्यनाथ मंदिर से सटा हुआ ही देवी पार्वती का भी एक मंदिर है। हर साल सावन के महीने में यहां बहुत ही भव्य मेला लगता है।
कांवड़ में जल भर कर लाने की और भोलेनाथ को चढ़ाने की परम्परा यहां सदियों से चली आ रही है। कांवड़ में जल सुल्तानगंज की पवित्र गंगा से भरा जाता है।
वहां से जल लेकर लगभग 105 किलोमीटर पैदल चल कर देवघर पहुंचते हैं। जल ले जाते समय इस बात का ख्याल रखना होता है कि कांवड़ जमीन से ना सटे।