शौचालय नहीं… सामने बंधी बकरियां… गुजरती है ट्रेन तो सहम जाते बच्चे; बिहार के इस विद्यालय का कुछ ऐसा है हाल

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तेज गति से कोई ट्रेन गुजरती है तो छत जैसे थरथरा उठती है। छत जर्जर जो हो चुकी है। प्लास्टर उखड़ चुके हैं, पर अभिभावक बच्चों को भेज रहे हैं कि कम से कम पढ़ तो लेंगे। यूं कहें कि यहां बच्चे खतरों के बीच अपने सपने बुन रहे हैं।

यह हाल है प्राथमिक विद्यालय, महमुदीचक, झुग्गी-झोपड़ी का। राजेंद्र नगर टर्मिनल से सटे इस विद्यालय की स्थापना 1999 में की गई थी। ऐसे कई स्कूल हैं, जहां अभी तक सुविधा नहीं पहुंची है।

यह विद्यालय सामुदायिक भवन में संचालित हो रहा है। कमरे दो हैं, जिनमें से एक आंगनबाड़ी को दे दिया गया है। इस एक कमरे में ही कक्षा एक से पांच तक के बच्चे साथ बैठकर पढ़ते हैं।

ट्रेन गुजरती है, तो सहम जाते हैं बच्चे और शिक्षक

मध्याह्न भोजन बरामदे में तैयार होता है। स्कूल में कुल 35 बच्चे और दो शिक्षक (एक महिला व एक पुरुष) हैं। स्कूल तीन तरफ से झुग्गी-झोपड़ी से घिरा हुआ है। गंदगी पसरी हुई है। दक्षिण की ओर से राजेंद्र नगर टर्मिनल स्टेशन का चार नंबर प्लेटफॉर्म है।

जिस कमरे में बच्चे पढ़ाई करते हैं, वहां की दीवार और छत जर्जर है। पास की पटरियों से ट्रेन गुजरती है तो बच्चे और शिक्षक सहम जाते हैं कि कहीं छत गिर न जाए। जिस कमरे में एक से पांचवीं तक की कक्षा लगती है, उसी के एक कोने में स्कूल का ऑफिस भी है, जहां प्रधानाध्यापक बैठते हैं।

स्कूल में कोई शौचालय नहीं

यहीं खेल सामग्री और पाठ्य पुस्तकें भी रखी हैं। यह स्कूल ऐसै है, जैसे किसी राहत शिविर का दृश्य प्रस्तुत कर रहा हो। सामने ही सार्वजनिक नल है, जहां झुग्गी-झोपड़ी के निवासी बर्तन और कपड़े धोते रहते हैं। लोग यहीं स्नान भी करते हैं। स्कूल के द्वार के सामने बकरियां बंधी हैं।

इसी वातावरण में बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। स्कूल में कोई शौचालय नहीं है। शिक्षक और बच्चे बाहर बने सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल करते हैं। शिक्षा व्यवस्था में सुधार को चलाए जा रहे अभियान के तहत हर दिन जिला शिक्षा कार्यालय की निरीक्षण टीम स्कूल आती है। यहां की व्यवस्था की रिपोर्ट हर दिन विभाग को सौंपी जाती है। कम से कम बुनियादी सुविधा तो मिले, बच्चे इसकी प्रतीक्षा में हैं।

 

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