सासाराम की दिव्यांग अर्चना यूजीसी नेट परीक्षा में सफल होकर बनी मिसाल, 13 साल तमाम दुश्वारियों से जूझती रही

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यह जीवन यात्रा है उस बेटी की जो परिस्थितिवश अभिशप्त हुई। अपनों ने परित्याग किया लेकिन उसकी जिजीविषा ने उसे सशक्त बना समाज के सामने न केवल खड़े होने का साहस दिया है बल्कि अपनों जैसी अन्य बेटियों के लिए उदाहरण भी बनी हैं।

जटिल बीमारी में सासाराम के वरिष्ठ चिकित्सक ने मदद का हाथ बढ़ा उसे निरोग बनाया। रोहतास जिले के दिनारा प्रखंड के हरवंशपुर गांव के किसान सुदर्शन चौधरी और शिक्षिका धरक्षना देवी की बेटी अर्चना की दिवाली के दौरान पटाखे की चिंगारी से दोनों आंख की रोशनी चली गई।

गत 13 वर्षों से परिस्थितियों से लड़ आज सशक्त बनी हैं। तमाम विघ्नों को पार करते हुए यूजीसी नेट परीक्षा में सफल होकर जूनियर रिसर्च फैलो के लिए चयनित हुई हैं।

अर्चना बताती हैं कि 2010 में वे नौवीं की छात्रा थी तभी उनके इकलौते भाई द्वारा फोड़े गए पटाखे से उनकी दोनों आंखें क्षतिग्रस्त हो गईं। वाराणसी में इलाज के क्रम में चिकित्सकों ने स्पष्ट कर दिया कि उनकी आंख की रोशनी अब नहीं लौटेगी।

जीवन भर दृष्टिहीन रहने का दर्द लिए जब घर आई तो भाई के तीखे बोल से मर्माहत हो गईं। उसने परिवार पर बोझ बता, घर से निकल जाने को कहा।

जटिल बीमारी में भी जारी रखी पढ़ाई

अर्चना कहती हैं कि उनके पेट में बड़ा पथरी होने व अन्य बीमारी के कारण वे काफी परेशान रहने लगी। लखनऊ में कोई निःशुल्क इलाज करने के लिए तैयार नहीं हुआ तो उनके एक परिचित ने सासाराम में वरिष्ठ सर्जन डा. उपेंद्र कुमार राय के बारे में बताया।

इसी बीच यूजीसी की परीक्षा भी थी। असह्य दर्द के बीच वे पढ़ाई को जारी रखा। परीक्षा देकर वे डा. उपेंद्र कुमार राय से बातकर अपनी स्थिति को स्पष्ट की। डा. यूके राय ने उनका निशुल्क इलाज का भरोसा दिलाया। इसके बाद वे यहां आकर अपनी सर्जरी कराईं।

जांच से लेकर दवा आदि तक की व्यवस्था चिकित्सक द्वारा की गई। अब वे पूरी तरह निरोग हैं। जाते समय चिकित्सक द्वारा ढेरों बधाई व प्रोत्साहन भी मिला।

विषम परिस्थितियों में भी नहीं हुई विचलित अर्चना

इस विषम परिस्थिति से लड़ने और शिक्षा जारी रखने का संकल्प ले वाराणसी पहुंच गईं। वहां जीवन ज्योति संस्था में रह ब्रेल लिपि, मोमबत्ती निर्माण और कढ़ाई बुनाई का प्रशिक्षण लिया।

पेट चलाने और पढ़ाई के लिए भिक्षाटन तक का सहारा लिया। इसके बाद वे अपनी तरह कुछ बेटियों की सलाह पर लखनऊ चली गईं।

वहां एक संस्था के माध्यम से 2012 में मैट्रिक, 2014 में इंटरमीडिएट 75 प्रतिशत से अधिक अंकों के साथ पास किया। स्नातक के लिए बीएचयू प्रवेश परीक्षा में सफल रही, लेकिन अर्थाभाव के कारण लखनऊ नहीं छोड़ पाई।

वहां डॉक्टर शकुंतला मिश्रा विश्वविद्यालय में नामांकन ली और स्नातक, स्नातकोत्तर हिंदी साहित्य से प्रथम श्रेणी डिस्टिंक्शन के साथ पास की। इस वर्ष यूजीसी नेट परीक्षा में सफल होकर जूनियर रिसर्च फैलो प्राप्त कर लिया है। अब वे शोध कार्य करेंगी।

अडिग रहकर आगे का मार्ग किया प्रशस्त

अर्चना बताती हैं कि 13 वर्षों से वे गांव नहीं गई लेकिन वे अपने कर्तव्य पथ से विचलित नहीं हुई। अब उनका जीवन का उद्देश्य प्राध्यापक बन अपनी जैसी बेटियों का मजबूत सहारा बनना है, ताकि अभिशप्त, परित्यक्त बेटियां सशक्त बन सकें।

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