एक सिलाई मशीन से और गलियों में sari बेचकर संघर्ष यात्रा शुरू करने वाली मनोरमा देवी, महिला सहकारिता के क्षेत्र में भागलपुर में बेंचमार्क मानी जाती थीं। 1000 करोड़ की मालकिन मनोरमा देवी आज लीजेंड स्टोरी ऑफ अनलिमिटेड करप्शन बन गईं। 13 फरवरी 2017 को उनकी मौत हो गई। तब के बाद से अब तक सृजन संभल नहीं पाया। जांच में घोटाले की रकम रोज बढ़ती ही जा रही है।
पति अवधेश कुमार की 1991 में मौत के बाद मनोरमा देवी छह बच्चों की देखभाल के लिए सबौर आईं थीं। अवधेश कुमार रांची स्थित अनुसंधान संस्थान में प्रधान वैज्ञानिक थे। रांची में ही उन्होंने 1993-94 में सृजन महिला विकास सहयोग समिति की स्थापना की थी। उसमें देवर ने सहयोग किया था।
बाद में देवर को भी समिति से अलग कर दिया। 1996 में सबौर में ही मनोरमा देवी ने एक कमरा किराये पर लेकर कपड़े सिलना व बेचना शुरू किया। पैसे की कमी आड़े आई तो रजन्दीपुर पैक्स ने 10 हजार रुपये उन्हें उधार दिये। समिति से महिलाओं को जुड़ता देख भागलपुर को-ऑपरेटिव बैंक ने सृजन को 40 हजार रुपये कर्ज दिया।
उसके बाद सिल्क sari , सजावटी सामान आदि का निर्माण होने लगा। ग्रामीण विकास विभाग ने सृजन को ग्रेड-1 का प्रमाण पत्र दिया। केंद्रीय वित्त मंत्रालय और बिहार के सहकारिता विभाग ने संस्था को सम्मानित किया। स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के गठन के लिए जब राज्य सरकार ने जीविका का गठन किया तब सृजन को माइक्रो फाइनेंस से लेकर तमाम तरह का जिम्मा मिला।
सरकारी मदद के लिए कई खाते बैंकों में भी खोले गए और उसी के बाद सृजन की सरकारी धन में सेंधमारी शुरू हो गयी।
सृजन घोटाले में जितने भी मामले प्रकाश में आए हैं, सब 2000 के बाद के हैं। यानी 2003 से लेकर अब तक संस्था ने जमकर सरकारी राशि का दुरुपयोग किया।
भीखनपुर स्थित जिस प्रिंटिंग प्रेस में फर्जी पासबुक व स्टेटमेंट तैयार होता था। उसे मनोरमा देवी के ही प्रमुख फाइनेंशियल सलाहकार ने खुलवाया था। स्कूटर पर चलने वाला सलाहकार भीखनपुर में अरबों का स्वामी है।