श्यामा माई की जितनी प्रसिद्धी है, उतना ही इस मंदिर का इतिहास भी चौंकाने वाला है. यह मंदिर दरभंगा महाराजा की चिता के ऊपर स्थापित है. मां काली जिसे स्थानीय भक्त श्यामा माई के नाम से पूजते हैं, इनकी महिमा अपरंपार है. बताया जाता है कि श्मशान में मंदिर बनने के बाद यह स्थान पूजनीय हो गया. मां श्यामा माई को यहां के स्थानीय लोग कुलदेवी भी मानते हैं.
दरअसल, यह मंदिर 1933 ईस्वी में दरभंगा महाराज रामेश्वर सिंह की चिता पर बनाया गया था, जिस जगह पर मंदिर की स्थापना की गई, उसी जगह पर दरभंगा राज परिवार का श्मशान स्थल था. दरभंगा महाराज धीराज रामेश्वर सिंह की मृत्यु के बाद उनकी चिता के ऊपर सन 1933 में महाराज धीराज कामेश्वर सिंह के द्वारा मंदिर स्थापित किया गया. माना जाता है कि रामेश्वर सिंह एक बहुत बड़े साधक थे. इसी वजह से महाराज धीराज कामेश्वर सिंह द्वारा मंदिर की स्थापना और बनावट दोनों ही तांत्रिक विधि से की गई है.
मंदिर में मिलेंगे तंत्र साधना के प्रतीक
मंदिर के बाहरी और ऊपरी भाग में तंत्र साधक के प्रतीक चिन्ह आपको दिख जाएंगे.
इसके अलावा मंदिर में कई जगहों पर तंत्र साधक के प्रतीक चिन्ह देखने को मिलेंगे.गर्भगृह में भगवान शिव के ऊपर मां श्यामा विराजमान हैं. वहीं मां श्यामा की दाहिनी ओर महाकाल और बाई ओर गणेश व बटुक भैरव की प्रतिमा है. मां भक्तों को आशीर्वाद देने की मुद्रा में यहां स्थापित हैं.
श्मशान भूमि पर होते हैं शुभ कार्य
सनातन धर्म में शादी के बाद नवविवाहित जोड़े को सावा साल तक शमशान भूमि की तरफ नहीं जाने दिया जाता है, लेकिन श्मशान भूमि में स्थापित मां श्यामा के दरबार में न सिर्फ नवविवाहित जोड़े आते हैं, बल्कि यहां से हर तरह के मांगलिक कार्य भी होते हैं. माना जाता है कि यहां से किए गए मांगलिक कार्य या फिर वैवाहिक कार्य मां श्यामा के आशीर्वाद से अटूट होता है. इसी वजह से यहां प्रत्येक वर्ष हजारों की संख्या में मांगलिक कार्य के साथ शादी विवाह जैसे शुभ कार्य किए जाते हैं.