साल की तपस्या के बाद होता है आयोजन,3 महीने तक बौद्ध भिक्षु भिक्षाटन के लिए बाहर नहीं निकलते है

जानकारी

वर्षावास काल व्यतीत करने वाले बौद्ध भिक्षुओं को परंपरा के अनुसार बौद्ध उपासक-उपासिकाओं द्वारा दैनिक उपयोग के सामग्री सहित चीवर दान करने का काफी महत्व माना जाता है. यहीं कारण है कि आश्विन पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक विभिन्न महाविहारों में अपनी परंपरा के अनुसार कठिन चीवरदान समारोह का आयोजन किया जाता है. जिसमें हर उपासक-उपासिका अपनी श्रद्धा व साम‌र्थ्य के अनुरूप बौद्ध भिक्षुओं के उपयोग की सामग्री दान देते हैं.

बोधगया के महाबोधी मंदिर परिसर में रविवार को बोधगया मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के द्वारा कठिन चिवरदान समारोह का आयोजन किया गया. इस मौके पर थाईलैंड, वियतनाम, जापान, कंबोडिया, लाओस, कोरिया, भूटान, नेपाल, तिब्बत देशों के बौद्ध भिक्षु और लामा सहित बोधगया के विभिन्न देशों के बौद्ध मठों के बौद्ध भिक्षु शामिल हुए.

कोविड काल के बाद यह पहली बार बड़े भव्य समारोह के रूप में कठिन चिवरदान समारोह का अयोजन किया गया. चीवर दान समारोह से पूर्व उपासक-उपासिकाओं द्वारा महाबोधि मंदिर में दान दिये जाने वाले चीवर के साथ विशेष पूजा-अर्चना होती है. उसके बाद महाविहार परिसर में परंपरागत तरीके से चीवरदान दिया जाता है.

बौद्ध भिक्षुओं के लिए चिवरदान का विशेष महत्व है. बताया जाता है कि 3 महीने तक बौद्ध भिक्षु भिक्षाटन के लिए बाहर नहीं निकलते है. एक हीं स्थान पर भगवान बुद्ध का ध्यान, पूजा करने की परंपरा है. ऐसी मान्यता है कि बरसात के दिनों में ज्यादतार कीड़े मकोड़े सड़कों पर निकलते हैं. इस दौरान बौद्ध भिक्षुओं के भिक्षाटन के दौरान कई कीड़े मकोड़े पैर से दब कर मर जाते है.

बौद्ध भिक्षु 3 महीने तक वर्षावास के दौरान एक ही स्थान पर रहकर पूजा साधना करते है. वर्षावास के बाद कठिन चिवरदान समरोह का आयोजन किया जाता है. समरोह में बौद्ध भिक्षुओं के दैनिक उपयोग में लाने वाली वस्तुओं का वितरण और संघदान कराया गया.

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