हिन्दी के वयोवृद्ध साहित्यसेवी और बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त नहीं रहे। रविवार सुबह दस बजे पटना के एक निजी अस्पताल में उनका निधन हो गया। वे 88 वर्ष के थे। पिछले कुछ दिनों से वे बीमार चल रहे थे। उनके निधन का समाचार फैलते ही साहित्य और प्रबुद्ध-समाज में शोक की लहर फैल गई।
नृपेंद्रनाथ गुप्त साहित्यिक त्रैमासिकी भाषा भारती संवाद के प्रधान संपादक भी थे। सोमवार को गुल्बी घाट पर उनका अग्नि-संस्कार होगा। बड़े बेटे आलोक कुमार उन्हें मुखाग्नि देंगे।
साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने बताया कि गुप्त के निधन से हिन्दी ने अपना अनन्य सेवक और उन्होंने अपना आत्मीय शुभेच्छु, सहयोगी एवं मार्गदर्शक खो दिया। हिन्दी के लिए उनके मन में जो त्याग की भावना थी वह दूसरों में कम ही दिखाई देती है। उन्होंने सैकड़ों लोगों को हिन्दी और साहित्य की ओर उन्मुख किया।
प्रदेश के कई साहित्यकारों और कवियों ने नृपेंद्रनाथ गुप्त के निधन पर शोक जताया है। वे अपने पीछे दो पुत्र आलोक कुमार गुप्त एवं विवेक कुमार समेत पूरे परिवार को शोक-संतप्त छोड़ गए।