यह बिहार का एकलौता Red Fort है। कहते हैं बनाने वाले ने इसे दिल्ली के लाल किले के तर्ज पर बनाया था। यही कारण हैं कि पहली नजर में आप अपनी आंखों पर विश्वास नहीं करेंगे। कहने के लिए बनावट एक है लेकिन दोनों के भाग्य में जमीन आसमान का अंतर है।
एक Red Fort पर देश के प्रधानमंत्री 15 अगस्त को राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं तो दूसरी ओर इस लाल किले पर कोई राष्ट्रीय ध्वज फहराने नहीं आता। किले पर झंडा फहराने के लिए रॉड पर लगाया गया है। इस देखकर यहीं प्रतीत होता है कि यह किला आज भी उस सच्चे भारतीय का इंतजार कर रहा है जो आकर उसके मीनार पर राष्ट्रीय ध्वज को लहराये।
वरिष्ठ पत्रकार कुमुद सिंह की माने तो यह दरभंगा का लालकिला है। वर्ष 1962 के बाद किसी ने इस किले पर तिरंगा लहराने की जरूरत महसूस नहीं की। नाही कांग्रेस और ना ही भाजपा जैसी देशभक्त पार्टी के किसी नेता ने।
यहां तक की दरभंगा राज के किसी सदस्य ने भी यहां अब तक झंडा नहीं लहराया। सूना पडा झंडा आज भी संविधानसभा के सदस्य और सांसद डॉ सर कामेश्वर सिंह को याद कर रहा है, जिन्होंने 26 जनवरी 1950 को अपना ध्वज हटाकर यहां तिरंगा लहराया था। यह स्थान दरभंगा के सांसद, जिलाधिकारी, आयुक्त या विधायक का ही नहीं एक अदद भारतीय नागरिक का इंतजार कर रहा है, जो यहां लहरा दे गौरवशाली तिरंगा।