नवरात्र का आगाज होते ही रामलीला का जश्न भी शुरू हो जाता है। पुरे हिन्दुस्तान में जहां दुर्गापूजा के बड़े बड़े पंडाल लगते हैं, रामलीला की भी एक अलग छटा देखने को मिलती है।
यही वो समय है जब भगवान राम ने रावण का वध किया था और बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी और तभी युगों-युगों से इसी कहानी का मंचन रामलीला के रूप में होता है।
कहते हैं रामलीला का मंचन त्रेता युग से हो रहा है और आज कलियुग में भी इसका मंचन होता है। लेकिन इन सब में एक चीज़ जो नहीं दिखाई जाती है वो है अकाल बोधन। क्या है अकाल बोधन?
आश्विन महीने में मां दुर्गा के आह्वान को ही काल बोधन कहते हैं। यह दो संस्कृत शब्दों से बना है, अकाल यानी असमय और बोधन या आह्वान या पूजन।
असल में नवरात्र साल में दो बार आते हैं, एक चैत्र नवरात्र या बसंती पूजा और एक शरत काल में होने वाली नवरात्र यानी दुर्गा पूजा।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम को जब अपनी पत्नी सीता को रावण के चुंगल से छुड़ाना था, तब उन्होंने लंका जाने से पहले शरत काल में ही मां दुर्गा की पूजा की थी।
इसका उल्लेख आपको वाल्मीकि की रामायण में नहीं मिलेगा, लेकिन पुराणों में इसका उल्लेख है। देवी दुर्गा लंका राज्य की पूजनीय देवी थी।
भगवान राम दुर्गा की राज्य लंका भेद करने से पहले देवी से इजाज़त लेना चाहते थे। श्री राम ने यजमान बनकर मां दुर्गा की पूजा की थी।
इस दौरान देवी को संतुष्ट करने के लिए 108 नील कमल की आवश्यकता थी।
पुरे ब्रह्माण्ड में ढूंढ़ने पर भी मर्यादा पुरुषोत्तम को केवल 107 नील कमल ही मिल पाए थे, तभी उन्होंने पूजा संपन्न करने के लिए अपनी एक आंख देवी को अर्पण कर दी थी।
भगवान राम की निष्ठा, भक्ति और सत्यता को देखकर मां दुर्गा काफी प्रसन्न हुई और उन्हें विजयी होने का वर दिया।
रावण के विरुद्ध ये युद्ध सप्तमी तिथि में शुरू हुआ और अष्टमी-नवमी के संधिक्षण में रावण का वध किया गया और युद्ध शेष हुआ।
तब से लेकर आज तक भगवान राम की शुरू की गयी इस प्रथा को आज भी भक्तगण हर्षोल्लास से मनाते आ रहे हैं।