मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जन्मोत्सव यानी रामनवमी सिर्फ धार्मिक उत्सव भर नहीं है, बल्कि शेखपुरा में यह लगभग डेढ़ हजार लोगों को पांच माह तक रोजगार उपलब्ध कराने का बड़ा साधन भी है। रोजगार में धार्मिक दीवार नहीं है। तभी तो हिंदुओं का यह प्रमुख त्योहार दर्जनों मुस्लिम दर्जी परिवार के घरों में भी शुभ लाभ की खुशियां ले आता है।
पांच दशक से यहां बनता है महावीरी पताका
शेखपुरा जिला लगभग पांच दशक से महावीरी पताका निर्माण का हब बना हुआ है। यहां बने महावीरी ध्वज व पताका से बिहार के साथ बंगाल, झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के 50 से अधिक जिलों में रामनवमी मनती है। दो साल के कोरोना लाकडाउन के बाद इस बार शेखपुरा के पताका कारोबार में फिर से बहार आ गई है। दूसरे राज्यों से इस बार पताका की इतनी मांग हुई कि यहां के निर्माता उसकी आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। शेखपुरा के पांच स्थानों पर पताका निर्माण होता है। पताका निर्माण से तीन पीढिय़ों से जुड़े ओमप्रकाश बताते हैं कि इस बार के बाजार ने पिछले दो साल के घाटे की भी भरपाई कर दी है।
- शेखपुरा में पांच माह का कुटीर उद्योग है महावीरी पताका निर्माण
- पताका निर्माण से पांच महीने तक डेढ़ हजार लोगों को मिलता है रोजगार
कार्तिक छठ के बाद ही शुरू हो जाता है पताका का निर्माण
रामनवमी का पताका बनाने का काम कार्तिक छठ पूजा के ठीक बाद शुरू हो जाता है। घर-घर में कुटीर उद्योग शुरू हो जाता है। ध्वज व पताके का थोक कारोबार करने वाले व्यवसायी कपड़ा और पट्टी कारीगरों को उपलब्ध करा देते हैं और कारीगर अपने-अपने घरों में कटाई-सिलाई का काम करते हैं। पताका के आकार के आधार पर कारीगरों को ढाई से 25 रुपये तक की मजदूरी का भुगतान होता है। पताका बनाने का काम कई मुस्लिम परिवार भी करते हैं।