88 हजार ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रही सिद्धाश्रम की स्थली (बक्सर) कई मायनों में महत्व रखती है। इनमें से एक रक्षाबंधन का त्योहार भी है।
ब्राह्मण या पुरोहित जब कभी अपने यजमान को रक्षासूत्र बांधते हैं, तो उनके द्वारा भाषित श्लोक- येन बद्धो बलि राजा दानवेंद्रो महाबल: तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल, इस मंत्र का संबंध भी बक्सर की धरती से जुड़ा हुआ है।
धार्मिक आख्यान के अनुसार, भगवान नारायण जब बक्सर की इस तपोभूमि पर भगवान वामन के रूप में अवतरित हुए थे, तब राजा बलि के अश्वमेध यज्ञ में याचक बनकर उसके सम्मुख उपस्थित हुए और दान में तीन पग भूमि प्राप्त कर दैत्यराज का सारा राज-पाट ले लिए।
परंतु वहां पर दैत्यराज बलि के हाथों भगवान छले गए और भक्ति भाव से वशीभूत होकर उनके साथ सुतल लोक को चले गए।
कहा जाता है कि तब लक्ष्मी जी ने सुतल लोक में जाकर बंदी हुए भगवान नारायण को छुड़ाने के लिए बलि को अपना भाई मानकर रक्षासूत्र बांधा था। इस तरह भगवान को मुक्त कराकर वह अपने साथ ले गई थीं।
इस प्रसंग की जानकारी देते हुए पंडित अमरेंद्र कुमार शास्त्री उर्फ साहेब पंडित बताते हैं कि जिस दिन मां लक्ष्मी ने रक्षासूत्र बांधा था, वो सावन की पूर्णिमा तिथि थी और भद्रा रहित होने के कारण ऋषियों ने इस दिन को सर्वश्रेष्ठ रक्षाबंधन के नाम से प्रतिष्ठित कर दिया। तब से यह तिथि शास्त्र और परंपरा में वर्णित है।
येन बद्धो बलि राजा दानवेंद्रो महाबल: तेन…
आचार्य ने बताया कि सामान्यतः इसका अर्थ यह लिया जाता है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।
धर्म शास्त्र के अनुसार, इसका अर्थ यह है कि रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहित अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात्, धर्म में प्रयुक्त किए गये थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं।
इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है।
रक्षाबंधन के त्योहार को लेकर न रखें संशय
आचार्यों ने कहा है कि लगातार दूसरा साल है, जब रक्षाबंधन के त्योहार को लेकर लोग काफी भ्रमित हैं। असल में, पूर्णिमा तिथि का आगमन आज बुधवार को दिन में 10:13 बजे ही हो जा रहा है।
लेकिन इसके साथ ही भद्रा भी लग रही है। इसके तहत भद्रा के उपरांत बुधवार की रात 8:58 बजे से गुरुवार की प्रातः 7:46 बजे तक का समय विशेष बताया गया है।
परंतु, रात्रि में दूर-दराज आना-जाना भाई अथवा बहन के लिए ठीक नहीं है। ऐसे में भाई-बहन के स्नेह-बंधन का यह त्योहार पूर्णिमा की उदया तिथि में गुरुवार की प्रातः काल से लेकर पूरे दिन पर्यंत तक मनाया जा सकता है, जो सभी तरह से हितकर रहेगा।