एशियाई देश अब एक मंच पर आकर शोध करेंगे । इसकी शुरुआत हो चुकी है। 21वीं सदी एशिया की मानी जा रही है। इसके लिए जरूरी है कि सभी एशियाई देश एकजुट हों।
परस्पर जानकारी साझा करें और मिलकर रिसर्च करें। ये बातें Nalanda University की कुलपति प्रो. सुनैना सिंह ने सोमवार को एकेडमी ऑफ कोरिय स्टडीज के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर करने के बाद कही।
कोरियाई संस्थान की ओर से उसके उपाध्यक्ष प्रो. शिन जॉन्ग वान ने हस्ताक्षर किए। प्रो. सुनैना ने कहा कि इस समझौते के अनुसार दोनों देशों के बीच संयुक्त रूप से शोध कार्यक्रम, शिक्षण एवं प्रशिक्षण, परस्पर शिक्षकों और छात्रों का आदान-प्रदान आदि किया जाएगा।
समझौते के तहत एक-दूसरे को आंकड़े और शोध परिणाम भी साझा किए जाएंगे। दोनों संस्थान भाषा, संस्कृति, तकनीक आदि को लेकर भी एक साथ काम करेंगे। शुरुआत में रिसर्च को प्राथमिकता दी जा रही है। उन्होंने कहा कि भारत विश्वगुरु रह चुका है। ज्ञान में सदियों पहले भारत वहां पहुंच चुका था, जहां बाकी देश अब पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।
Nalanda University में सदियों पहले दो हजार शिक्षक और 10 हजार छात्र अध्ययन-अध्यापन करते थे। विभिन्न विषयों की पढ़ाई होती है। प्रो. सुनैना ने नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में रुचि लेने और सहयोग करने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति भी आभार जताया।
साथ ही इस एमओयू को प्रधानमंत्री की इस्ट पॉलिसी के ख्याल से भी उपयोगी कहा। उन्होंने कहा कि अब तक 10 एमओयू पर हस्ताक्षर हो चुके हैं। यह एमओयू दोनों देशों के बीच पांच सालों के लिए मान्य होगा।
द एकेडमी ऑफ कोरियन स्टडीज के उपाध्यक्ष प्रो. शिन जॉन्ग वान ने कहा कि कोरिया की रुचि भारत में हमेशा से रही है। सदियों से कोरियाई लोग चीन के रास्ते भारत में आते रहे हैं।
वान ने कहा कि एकेडमी कोरियाई केंद्र सरकार का संस्थान है, जिसकी स्थापना 1978 में की गई थी। उन्होंने कहा कि दोनों देश शिक्षक, आंकड़ा, संसाधन आदि साझा करेंगे। साथ ही युवा शक्ति और विज्ञान एवं तकनीक को साझा करेंगे। उन्होंने कहा कि भारत मानव शक्ति के मामले में काफी समृद्ध है और आज दुनिया की निगाहें भारत की ओर हैं।
वहीं कोरिया आर्थिक रूप से समृद्ध और विकसित देश है। दोनों मिलकर बड़ी ताकत के रूप में उभर सकते हैं। उन्होंने कहा कि कोरियाई संस्कृति भारत से प्रभावित रही है।
