साल 1985 उनकी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। मास्टर्स खत्म करने के बाद उन्हें ढाका के एक इंटरनेशनल डिवेलपमेंट नॉन प्रॉफिट ऑर्गैनाइजेशन (BRAC) में जॉब मिल गई। यह संगठन बांग्लादेश के छोटे-छोटे गांवों में महिलाओं को सशक्त करने का काम करता था।
घोष कहते हैं, ‘वहां महिलाओं की बदतर स्थिति देखकर मेरी आंखों में आसूं आ जाते थे। उनकी हालत इतनी बुरी होती थी कि उन्हें बीमार हालत में भी अपना पेट भरने के लिए मजदूरी करनी पड़ती थी।’
उन्होंने BRAC के साथ लगभग डेढ़ दशक तक काम किया और 1997 में कोलकाता वापस लौट आए। 1998 में उन्होंने विलेज वेलफेयर सोसाइटी के लिए काम करना शुरू कर दिया। यह संगठन लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए काम करता था।
दूर-सुदूर इलाके के गांवों में जाकर उन्होंने देखा कि वहां कि स्थिति भी बांग्लादेश की महिलाओं से कुछ ज्यादा भिन्न नहीं थी। घोष के अनुसार, महिलाओं की स्थिति तभी बदल सकती है जब वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनें।
लेकिन उस वक्त अधिकांश महिलाएं अशिक्षित रहती थीं उन्हें बिजनेस के बारे में कोई जानकारी नहीं होती थी। इसी अशिक्षा का फायदा उठाकर पैसे देने वाले लोग उनका शोषण करते थे।