अपने पीएम मोदी, देश के सबसे बड़े पद पर है। सबसे आलीशान घर में रहते हैं। उनसे पहले भी कई नेता बड़े पद पर रहे हैं और पूरी शानोशौकत के साथ। उनके साथ-साथ उनके परिवार वालों ने भी खूब मलाई खाई है। नाम गिनाने की जरूरत नहीं है। उनको आप जानते ही होंगे। लेकिन हमारे पीएम मोदी का परिवार मलाई तो क्या ठीक से दूध तक नहीं पी पा रहा है।
जी हां, सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन आपको शायद ही पता हो कि पीएम मोदी के भाई अरविंद भाई मोदी दिन भर कबाड़ बीनकर अपना घर चला रहे हैं। सही पढ़ा आपने एक आम कबाड़ी की तरह वो वडनगर के आसपास फेरी लगारकर लोहा और गत्ता इक्ट्ठा करते हैं।
ये पीएम मोदी के चचरे भाई हैं। अब भाई तो भाई होता है चाहे मां जाया हो या चचेरा। वैसे भी भाई में तो बस आप भाई शब्द बड़ा चला है। ओए, मैं फलनवा का भाई हूं, तू जानता नहीं मुझे। इस तरह की लाइन हमेशा सुनने को मिलती हैं। लेकिन मोदी परिवार में कोई भी ये लाइन नहीं बोलता।
अरविंदभाई सुबह ठेली लेकर घर से निकलते हैं और दिन में 100-200 रुपए का कबाड़ा लेकर अपना परिवार चलाते हैं। उनकी पत्नी रजनीबेन हैं, जिन्होंने सोने के गहने या अच्छी साड़ियां दूसरों के पास ही देखी हैं। उनका कोई बच्चा नहीं है।
उनके एक और भाई हैं भरतभाई मोदी। वो भी ऐसी ही कठिन जिंदगी जीते हैं। वे वड़नगर से 80 किमी दूर पालनपुर के पास लालवाड़ा गांव में एक पेट्रोल पंप पर 6,000 रु। महीने में अटेंडेंट का काम करते हैं और हर 10 दिन में घर आते हैं।
वड़नगर में उनकी पत्नी रमीलाबेन पुराने भोजक शेरी इलाके में अपने छोटे-से घर में ही किराना का सामान बेचकर 3,000 रु। महीने की कमाई कर लेती हैं। तीसरे भाई 48 वर्षीय चंद्रकांतभाई अहमदाबाद के एक पशु गृह में हेल्पर का काम करते हैं।
हालांकि परिवार के कुछ सदस्य मोदी के सबसे छोटे भाई प्रह्लाद मोदी से दूरी बनाए रखते हैं। वे सस्ते गल्ले की एक दुकान चलाते हैं और गुजरात राज्य सस्ता गल्ला दुकान मालिक संगठन के अध्यक्ष हैं। वे सार्वजनिक वितरण प्रणाली में पारदर्शिता लाने के मामले में मुख्यमंत्री मोदी की पहल से नाराज रहते हैं और दुकान मालिकों परछापा डालने के खिलाफ प्रदर्शन कर चुके हैं। मोदी के बाकी कुनबे, उनके भाई, भतीजे, भतीजी या दूसरे रिश्तेदारों का जीवन संघर्षों और कठिनाइयों का ही है।
दरअसल कुछ तो जिंदगी बेहद गरीबी में काट रहे हैं। मोदी के चचेरे भाई अशोकभाई (मोदी के दिवंगत चाचा नरसिंहदास के बेटे) तो वड़नगर के घीकांटा बाजार में एक ठेले पर पतंगें, पटाखे और कुछ खाने-पीने की छोटी-मोटी चीजें बेचते हैं। अब उन्होंने 1,500 रु। महीने में 8-4 फुट की छोटी-सी दुकान किराए पर ले ली है। इस दुकान से उन्हें करीब 4,000 रु। मिल जाते हैं।
पत्नी वीणा के साथ एक स्थानीय जैन व्यापारी के साप्ताहिक गरीबों को भोजन कराने के आयोजन में काम करके वे 3,000 रु। और जुटा लेते हैं। इसमें अशोकभाई खिचड़ी और कढ़ी बनाते हैं ओर उनकी पत्नी बरतन मांजती हैं। ये लोग शहर में एक तीन कमरे के जर्जर-से मकान में रहते हैं।
पहले प्रधानमंत्रियों के साथ रहता था पूरा कुनबा
देश के प्रधानमंत्री अमूमन परिवार वाले रहे हैं। नेहरू के साथ बेटी इंदिरा रहती थीं। उनके उत्तराधिकारी लालबहादुर शास्त्री 1, मोतीलाल नेहरू मार्ग पर अपने पूरे कुनबे के साथ रहते थे। उनके साथ बेटा-बेटी, पोता-पोती सभी रहते थे। इंदिरा गांधी के बेटे राजीव और संजय तथा उनका परिवार साथ रहते थे।
यहां तक कि अविवाहित प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ भी एक परिवार था। वे 1998 में जब 7, रेसकोर्स रोड में रहने पहुंचे तो उनकी दत्तक पुत्री नम्रता और उनके पति रंजन भट्टाचार्य का परिवार भी साथ रहने आया।
परिवार से उदासीन मोदी
चाय की दुकान के मालिक दामोदरदास मूलचंद मोदी और उनकी गृहिणी पत्नी हीराबेन के छह बच्चों में से तीसरे नंबर के प्रधानमंत्री मोदी परिवार से निपट उदासीन हैं। यह लोगों को उनके निःस्वार्थ जीवन के बारे में बताने में उपयोगी है।
हाल में नोटबंदी के बमुश्किल हफ्ते भर बाद 14 नवंबर को मोदी ने गोवा की एक सभा में कुछ भावुक होकर कहा, ”मैं इतनी ऊंची कुर्सी पर बैठने के लिए पैदा नहीं हुआ। मेरा जो कुछ था, मेरा परिवार, मेरा घर।।।मैं सब कुछ देशसेवा के लिए छोड़ आया।” यह कहते समय उनका गला भर्रा गया था।