पितृपक्ष मेला में पत्थर के मूर्तियों की मांग बड़ जाती है। एक पखवारे तक चलने वाला मेला में शिल्पकारों को अच्छी आय हो जाती है। देश-विदेश से आए श्रद्धालु इन पत्थर के मूर्तियों की ओर आकर्षित होते हैं। मेला में छोटे-छोटे मूर्तियों की बिक्री अधिक होती है। दूर-दराज से आए तीर्थयात्री छोटी मूर्ति अधिक संख्या में खरीदारी करते हैं।
शिल्पकार पारस लाल गौड़ का कहना कि मूर्ति बनाने का काम राजस्थान के जयपुर के पास मकराना के खदान से सफेद पत्थर (मार्बल) लाकर बनाने का काम किया जाता है।
शिवलिंग जिले के पत्थरकट्टी के पहाड़ी का काला पत्थर से बनाई जाती है। वही मेला में छोटे-छोटे मूर्ति का अधिक मांग होने के कारण पत्थरकट्टी का बना मूर्ति मेला में लाने का काम किया जाता रहा है।
मेला में सबसे अधिक मांग
पितृपक्ष मेला में सबसे अधिक मांग मां काली, राधाकृष्ण, बुद्ध, मां दुर्गा, भगवान विष्णु आदि मूर्ति का मांग अधिक है। जरूरत के अनुसार तीर्थयात्री मूर्ति की खरीदारी करते हैं।
बंगाल के तीर्थयात्री अधिक करते खरीदारी
मेला में देश-विदेश आए तीर्थयात्री में सबसे अधिक मूर्ति की खरीदारी पश्चिम बंगाल के तीर्थयात्री सबसे अधिक करते हैं। इसके अलावा पटना, इलाहाबाद, दिल्ली, वाराणसी, कानपुर आदि जगहों के तीर्थयात्री भी मूर्ति की खरीदारी करते हैं।
पितृपक्ष को देखते हुए शिल्पकार कई दिनों से पत्थर के तराने में लग जाते हैं। पत्थर को तरास कर देव-देवताओं आदि की मूर्ति बनाते हैं।
पत्थरकट्टी की पहाड़ी के पत्थर से बना विष्णुपद मंदिर
शिल्पकार भरत लाल गौड़ एवं सुरेश लाला गौड़ का कहना है कि गया में हम लोग 12 व पत्थकट्टी में मात्र तीन परिवार ही रह गए हैं गया में हमारे पूर्वजों को लाने का काम महारानी अहिलाबाई होल्कर द्वारा किया गया था। महारानी ने विष्णुपद मंदिर बनाने के लिए उन्हें गया में बुलाया था।
उस समय तो तीन सौ परिवार गया और पत्थरकट्टी आकर बसे थे। आज मात्र दोनों जगहों पर मात्र 15 परिवार ही रह गए हैं। क्योंकि विष्णुपद मंदिर का निर्माण पत्थरकट्टी की पहाड़ी के पत्थर से किया गया है।