भगवान श्रीहरि विष्णु को तुलसी अत्यंत प्रिय हैं। बिना तुलसी के भगवान विष्णु का पूजा अधूरा माना जाता है। काफी समय पहले भगवान विष्णु का तुलसी अर्चना 1.25 लाख तुलसी दल से किया जाता था। इसी उद्देश्य को लेकर तुलसी बगीचा का निर्माण किया गया था। लेकिन, आज तुलसी अर्चना एक हजार तुलसी दल से हो रहा है। क्योंकि पर्याप्त मात्रा में तुलसी दल आज नहीं मिल रहा है।
पितृपक्ष में तुलसी दल का महत्व अधिक बढ़ जाता है। साथ ही तुलसी दल की मांग आमदिनों की तुलना में दस गुणा अधिक हो जाता है। आमदिनों में तुलसी दल की खपत सौ किलो है। जबकि पितृपक्ष में इसकी खपत 1000 किलो (10 क्विंटल) हो जाता है। इसी को देखते हुए तुलसी कोलकाता से मंगाया जाता है।
गयापाल पुरोहित महेश लाल गुपुत का कहना है कि भगवान श्रीहरि को तुलसी अधिक प्रिय हैं। साथ ही पिंडदान बिना तुलसी दल का नहीं होता है। पितृपक्ष में तुलसी का खपत दस गुणा बढ़ जाता है। जो तुलसी उद्यान से संभव नहीं है। खपत को देखते हुए तुलसी कोलकाता से आता है।
खपत को देखते हुए तुलसी उद्यान का किया है सुंदरीकरण
तुलसी के खपत को देखते हुए केंद्र सरकार ने तुलसी उद्यान का सुंदरीकरण का कार्य हृदय योजना के तहत कराया है। इससे देखने में यह सुंदर लगे। साथ ही तुलसी पत्र बाहर नहीं मंगाना पड़े। तुलसी उद्यान में चारदीवारी से लेकर पाथवे तक का निर्माण ग्रेनाइट एवं लाल पत्थर से किया गया है।
जो देखने में काफी सुंदर लगा है। तीन एकड़ में फैले तुलसी उद्यान को हृदय योजना के तहत खूब संवारने का काम किया है।
सौ साल से अधिक समय से है तुलसी उद्यान
तुलसी उद्यान का निर्माण सौ साल पहले किया गया था। उस समय तुलसी बाग कहा जाता था, क्योंकि भगवान श्री हरि विष्णु पर तुलसी दल अर्पण तुलसी बाग से ही होता था। आज भी विष्णु पद स्थित मंदिर में भगवान श्रीहरि विष्णु के चरण चिन्ह का सिंगार में उद्यान का ही तुलसी का इस्तेमाल किया जाता है।
विष्णुपद प्रबंध कारिणी समिति के अध्यक्ष शंभूलाल बिठ्ठल ने कहा कि तुलसी उद्यान सौ साल से अधिक पुराना है।