गयाधाम धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं ऐतिहासिक नगरी है. जिसे ज्ञान और मोक्ष की भूमि कहा जाता है. पितरों के मोक्ष की कामना को लेकर पितृपक्ष में देश-विदेश से लाखों पिंडदानी कर्मकांड करने के लिए आते हैं.
पितृपक्ष मेला के 11वें दिन गया सिर वेदी और गया कूप में पिंडदान करने का विधान है. इस कारण से पिंडदानी अपने-अपने पितृरों की मोक्ष के लिए पूरे विधि विधान से पिंडदान करने की प्रक्रिया को पूरा करते हैं. गया कूप वेदी पर पिंडदानी साथ में नारियल लेकर कर्मकांड की विधि संपन्न करते हैं. कर्मकांड समाप्त करने के बाद गया कूप में नारियल को डालते हैं. वहीं गया सिर वेदी पर कर्मकांड करने बाद पिंड को गयासुर के सिर पर अर्पित किया जाता है.
नरक भोग रहे पूर्वजों को भी होती स्वर्ग की प्राप्ति
गया सिर की ऐसी मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से नरक भोग रहे पूर्वजों को भी स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. वहीं, गया कूप के बारे में कहा जाता है कि यहां पिंडदान करने से जो स्वर्गस्थ पितर हैं, उन्हें मोक्ष को प्राप्ती होती है. दोनों तीर्थों की पौराणिक कथा भी प्रचलित है.
शास्त्र के अनुसार गयासुर के सीने पर जब भगवान श्रीहरि चरण रखे थे तो सिर कांप रहा था, तब भगवान ने गदा सिर पर रख दी. सिर शांत होने पर भगवान ने वरदान दिया था कि तुम्हारे सिर पर जिसका पिंडदान होगा वह व्यक्ति स्वर्ग की प्राप्ति करेगा. वहीं गया कूप वेदी पर अकाल मौत होने वाले लोगों के लिए पिंडदान होता है. घर में अशांति होने पर उक्त वेदी पर पिंडदान कर माता संकटा पूजा किया जाता है.
कहा जाता है कि पितृपक्ष मेला में गया सिर वेदी और गया कूप पिंडवेदी पर पिंडदान के बाद पिंडदानी अपने-अपने घर लौटने की तैयारी करने लगते हैं. इस संबंध मे जानकारी देते हुए पंडा प्रदीप भइया बताते हैं कि 54 वेदी में एक गया सिर और गया कूप वेदी है. गया कूप वेदी में त्रिपिंडी श्राद्ध करने से प्रेतों का मोक्ष होता हैं एवं गया निमित्तक श्राद्ध करने से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता हैं.
इस वेदी में एक कूप है, जिसे गया सुर की नाभि कहा जाता है. यहां पितरों से प्रेत योनि से मुक्ति मिलता है. नारियल में पितर को आह्वान कर कर्मकांड का विधि विधान करके नारियल को उस कूप में छोड़ दिया जाता है. वहीं गया सिर की ऐसी मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से नरक भोग रहे पूर्वजों को भी स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. गया सिर में गयासुर का सिर है.