पटना संघ्रालय के शताबी समारोह में ‘यक्षिणी’ ने सुनाई अपनी उद्भव गाथा

कही-सुनी

पटना संग्रहालय के शताब्दी वर्ष समारोह के अंतिम दिन रंगारंग कार्यक्रम और कलाकृतियों के साथ प्रतियोगिता आयोजित की गई। पटना संग्रहालय और फेसेस के द्वारा यक्षिणी नाटक का मंचन किया गया। दो भागों में प्रस्तुत नाटक में यक्षिणी के मिलने से लेकर कलाकृति के म्यूजियम में रखे जाने की यात्रा दिखाई गई। नाटक में दीदारगंज के स्थानीय लोगों के द्वारा यक्षिणी की मूर्ति पर कपड़ा धोने को खूबसूरत ढंग से दिखाया गया कि किस तरह 1917 में कपड़े धोने वाले पत्थर के अगल-बगल खुदाई की जाती है और फिर निकाली गई इस मूर्ति को लक्ष्मी की प्रतिमा मानकर पूजा-अर्चना करने लगे थे।

नाटक क प्रस्तुतिकरण पटना यूनिवर्सिटी के छात्र नरेन्द्र और प्राध्यापक प्रो. समादार, मिस्टर वाल्श, गुलाम रसूल, डॉ. स्पूनर सहित सभी पात्र वास्तविकता की ओर ले जाते हैं। दूसरे भाग में यक्षिणी के मूर्तिकार और इसकी प्रेरणा के बारे में दिखाया गया है। यह भाग कल्पना के आधार पर यक्षिणी से संबंधित कई महत्वपूर्ण सवालों का तर्कपूर्ण उत्तर दे जाता है । साथ ही माधवी और भद्रक के इर्द-गिर्द घूमती इस कहानी में सात्विक प्रेम कथा दिखाई गई।


बुलकनी (सुनीता भारती), जानकी (रितु राज), अकलू (चंदन कुमार), बहरुद्दीन (आर नरेंद्र), नरेंद्र (शुभम सिंह), प्रो. समादार (कुमुद रंजन), वाल्श (अंशुमन), डी बी स्पूनर (अभिनव कश्यप), देवी माधवी (सुनीता भारती), राजशिल्पी भद्रक (आमिर हक) समेत सभी किरदारों ने नाटक के संवाद और प्रकाश संयोजन के सुगम संयोग ने यक्षिणी के उद्भव गाथा को कालजयी बना दिया।

नाटक क साथ ही इस अवसर पर पेंटिंग प्रतियोगिता ayojit की गई। त्रिनेत्र आर्ट स्टूडियो की ओर से विजेताओं को पुरस्कार वितरित किया गया। इस अवसर पर मधुबनी पेंटिंग की कलाकार उषा झा, लेखक ममता मेहरोत्र विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहीं। कलाकृतियों और पुरावशेषों के ऊर अंजलि यादव, प्रियंका वर्मा, सुनीता कुमारी, प्रीती सेन, शिशिर कुमार, प्रीती मधुलिका ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। इस दौरान यक्षिणी पर लिखी कविता शार्ट फिल्म को भी प्रदर्शित किया गया। इस अवसर पर उषा झा ने विरासत और कला के संगम पर अपनी बात कहीं और लेखिका और समाज सेविका ममता मेहरोत्र ने भी कवियों की रचनात्मकता की प्रशंसा की।

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