बिहार की राजधानी पटना की गिनती दुनिया के प्राचीनत शहरों में होती है. इतिहास में यह शहर कभी पाटिलीपुत्र के नाम भी जाना जाता रहा है. यह हजारों साल से सत्ता का केंद्र रहा है. करीब 2500 हजार पहले मौर्य काल से लेकर मुगल और फिर ब्रिटिश काल के साथ-साथ स्वतंत्र भारत में यह एक प्रमुख सत्ता केंद्र है. यहां कई ऐतिहासिक धरोहरें हैं. इस शहर की हर एक गली और सड़क का अपना खास इतिहास है. इसी में से एक है बोरिंग रोड. इसका पूरा नाम बोरिंग कैनाल रोड है. हालांकि कुछ साल पहले इस रोड का नाम बदल दिया गया. इसको जवाहरलाल नेहरू मार्ग नाम दिया गया है. लेकिन, बोलचाल और चलन में आज भी यह बोरिंग रोड ही है. बोरिंग रोड का पूरा इलाका पटना का दिल कहलाता है. चौबीसों घंटे गुलजार रहने वाले इस इलाके में शहर के सबसे समृद्ध और रुतबे वाले लोगों के आवास और तमाम बड़ी कंपनियों के दफ्तर हैं. ब्रिटिश काल से ही इस रोड पर कई इमारतें बनी हैं. खैर, हम मुद्दे पर आते हैं. हम आपसे बात कर रहे हैं कि इस रोड का नाम बोरिंग रोड क्यों पड़ा. यह बेहद दिलचस्प कहानी है.
दरअसल, ब्रिटिश राज में पूर्वी भारत में कोलकाता के बाद पटना सबसे बड़ा केंद्र था. ब्रिटिश काल यानी 1917 में ही यहां पटना यूनिर्सिटी की स्थापना हुई. 1925 में ही पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (PMCH) की स्थापना हुई. 1912 में बंगाल से बिहार के अलग होने के बाद इसे राज्य की राजधानी बनाई गई. इस ऐतिहासिक शहर में करीब-करीब 250 साल पहले 1786 में ब्रिटिश सेना ने गोलघर का निर्माण करवाया था. 1770 के आकाल के बाद आनाज के भंडार के लिए खासतौर पर गोलघर बनवाया गया था. यह गोलघर आज भी इतिहास को समेटे हुए खड़ा है.
ब्रिटिश इंजीनियर के नाम पर नामकरण
हमने पटना के दिल में छिपे इन ऐतिहासिक तथ्यों को खंगालने के क्रम में बोरिंग रोड का इतिहास जानने की कोशिश. इसको लेकर इंटरनेट पर काफी समय लगाया. रोचक जानकारियां साझा करने का मंच quora वेबसाइट पर भी हमने समय बिताया. वहां से काफी अहम जानकारियां मिली. एक यूजर नवनीत कुमार ने अच्छी जानकारी दी है. उन्होंने लिखा है कि दरअसर बोरिंग रोड ही ब्रिटिश शासन का केंद्र था. उस वक्त पटना का विस्तार सीमित इलाके में था. शहर का उत्तरी भाग अन्य इलाकों से कटा हुआ था. उत्तरी इलाका गंगा नदी के किनारे है.
यहीं पर अंग्रेजों ने महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालय और संस्थान स्थापित किए थे. लेकिन, इस इलाके में पटना के अन्य क्षेत्रों से पहुंचने के लिए कोई सड़क नहीं थी. यहां सड़क बनाने के लिए ब्रिटिश सेना के नामी इंजीनियर कैप्टन जेपी बोरिंग को बुलाया गया. उस वक्त यहां एक नहर हुआ करती थी. वह नहर पटना के दक्षिणी इलाके को गंगा से जोड़ती थी. ब्रिटिश सेना के इंजीनियर ने 1839 में इस रोड का निर्माण शुरू किया. इसे 1842 में पूरा किया गया. उस वक्त नहर पर बनी यह सड़क इंजीनियरिंग की दृष्टि से एक बड़ी उपलब्धि थी. उसी इंजीनियर के नाम पर इसे बोरिंग कैनाल रोड नाम दिया गया. बाद में यह सड़क पटना के उत्तरी और दक्षिणी हिस्से को जोड़ दिया और पटना के विकास में अहम योगदान दिया. हालांकि कोरापर दी गई इस जानकारी को 100 फीसदी सही होने का दावा नहीं किया जा सकता. इसकी स्वतंत्र रूप से पुष्टि करना मुश्किल है.
पटना की सबसे अहम सड़क
एक दूसरे कोरा यूजर ने लिखा है कि यह रोड 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजी शासन व्यवस्था के लिए बेहद अहम साबित हुई थी. इसी सड़क से उस वक्त की सेंट्रल जेल जुड़ी हुई थी. वहीं पर अंग्रेजों ने सैकड़ों क्रांतिकारियों को कैद किया और कइयों को फांसी की सजा दी. आज बोरिंग रोड शहर के सबसे व्यस्त बाजारों में से एक है. इसके दोनों साइड में सबसे पॉश कॉलोनियां बसी हैं. इसमें रिटायर आईएएस-आईपीएस और अन्य अधिकारियों के आवास हैं. इस सड़क की लंबाई करीब दो किमी थी. मगर पटना के विस्तार के साथ इस रोड की लंबाई भी बढ़ गई है. इस सड़क को अब काफी चौड़ा कर दिया गया है.