ग्रामीण सड़कों के निर्माण की समय अवधि बढ़ाने की शक्ति कार्यपालक अभियंताओं को दी गई है। अब तक यह अधिकार मुख्य अभियंता और विभागीय सचिव के पास ही था। सड़कों के निर्माण में देरी होने के बाद अवधि विस्तार की प्रक्रिया में अधिक समय लगने के कारण विभाग ने यह निर्णय लिया है।
पथ निर्माण विभाग पहले ही कार्यपालक अभियंताओं को यह अधिकार दे चुका है। विभागीय सचिव पंकज कुमार पाल की ओर से इस बाबत आदेश जारी किया जा चुका है। विभाग ने कहा है कि अब तक साढ़े तीन करोड़ तक की संविदा वाले कार्यों के लिए मुख्य अभियंता तो इससे अधिक के काम में विभागीय सचिव/प्रधान सचिव की अध्यक्षता में गठित निविदा समिति अवधि विस्तार पर निर्णय लेती है।
मौजूदा प्रावधानों के अनुसार संवेदक के अनुरोध के बाद कार्यपालक अभियंता प्रस्ताव भेजते हैं और अधीक्षण अभियंता अनुशंसा करते हैं। साढ़े तीन करोड़ तक के काम में मुख्य अभियंता तो इससे अधिक के काम में विभागीय सचिव की अध्यक्षता वाली निविदा समिति निर्णय लेती है। इस प्रक्रिया में लंबा समय लग जाता है।
चूंकि पथ निर्माण विभाग ने कामों की अवधि विस्तार की शक्ति कार्यपालक अभियंताओं को अक्टूबर में ही दे दी है। इसलिए अब ग्रामीण कार्य विभाग भी उसी नीति पर अमल करेगा। अब ग्रामीण सड़कों के निर्माण करने वाले ठेकेदार कार्यपालक अभियंता के समक्ष समय अवधि बढ़ाने का आवेदन देंगे।
कार्यपालक अभियंताओं को यह अधिकार दिया गया है कि वे अपने अधीनस्थ कार्यप्रमंडल के अधीन वैसी सड़कें जो किसी कारणवश लंबित रह गई हैं, उसकी समीक्षा करेंगे। निर्माण कार्य अपूर्ण रहने की स्थिति में कार्यपालक अभियंता स्व-विवेक से ठेकेदारों की समय अवधि बढ़ाएंगे। कार्यपालक अभियंताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि ठेकेदारों द्वारा मांगी गई समय सीमा का औचित्य है और वह जरूरी है।
इंजीनियरों को यह भी देखना होगा कि ठेकेदार अमुक सड़क बनाने को गंभीर हैं। समय बढ़ाने की पूरी जिम्मेवारी कार्यपालक अभियंताओं की होगी। अगर संशोधित समय तक सड़कों का निर्माण नहीं हुआ तो यह माना जाएगा कि इंजीनियरों ने अपने विवेक का सही तरीके से प्रयोग नहीं किया और सामान्य तरीके से समय अवधि बढ़ा दी। इस स्थिति में ऐसे इंजीनियरों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।