क्या वर्क फ्रॉम होम (WFH) में कर्मचारियों की सीमाओं का उल्लंघन हुआ है? क्या कार्यालय में आकर काम करना, काम व जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए बेहतर है? क्या रिमोट वर्क के दौरान काम और घर के बीच की सीमाएं धुंधली हुईं और क्या इस तरह काम ने पारिवारिक जीवन पर या काम पर नकारात्मक प्रभाव डाला है, इन हालात का विश्लेषण करने के लिए आईआईटी, मद्रास और भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम), अमृतसर के विशेषज्ञों की टीमों ने एक अध्ययन किया जो प्रतिष्ठित जर्नल ‘एम्प्लाई रिलेशंस’ में भी प्रकाशित हुआ है।
कई प्रतिष्ठानों के लिए फायदेमंद रहा WFH
इन टीमों के मुताबिक, कोविड-19 महामारी की वजह से कई प्रतिष्ठानों को अपने कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम असाइन करना पड़ा। यह विकल्प कई प्रतिष्ठानों के लिए फायदेमंद रहा क्योंकि इसने उन्हें जोखिम के अलावा रखरखाव के खर्चों से भी बचाया। कई बड़े नियोक्ताओं ने इस ट्रेंड को जारी रखा है, हालांकि सभी कर्मचारी इससे खुश नहीं हैं।
महामारी के दौरान महिलाओं से की जाती थी ऐसी उम्मीद
आईआईटी मद्रास में डिपार्टमेंट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज की रूपाश्री बराल ने बताया, ‘वर्क फ्रॉम होम ने पुरुष एवं महिला दोनों कर्मचारियों पर जबर्दस्त दबाव डाला, खासकर जो विवाहित थे। उन्हें नई जलिटताओं का सामना करना पड़ा जिनसे उनका पहले पाला नहीं पड़ा था, उदाहरण के तौर पर कोविड-19 का डर, महामारी से जुड़ी रोजगार की असुरक्षा इत्यादि। काम और घर के बीच सीमा भी धुंधला गई थी, काम ने पारिवारिक जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाला और पारिवारिक जीवन ने काम पर, जिसे हम काम व परिवार के बीच संघर्ष के रूप में जानते हैं। कर्मचारियों के लिए यह स्थिति असहनीय थी। उन्हें लगता था कि वे विफल अभिभावक और विफल पेशेवर हैं। भारत जैसे देश में परंपरागत लैंगिक विचारधारा ने महामारी के चरम के दौरान दबाव में काफी वृद्धि की, खासकर महिलाओं के लिए क्योंकि उनसे एक साथ घर व बच्चों की देखभाल के साथ ही अपना पेशेवर कार्य करने की उम्मीद भी की जाती थी।’
बराल ने कहा कि सीमा का नियंत्रण, काम व परिवार के बीच संघर्ष घटाने और व्यक्तिपरक खुशहाली सुनिश्चित करने के लिए समस्या पर केंद्रित उससे निपटने की रणनीति को उत्कृष्ट पाया गया। इस रणनीति के तहत व्यक्ति की सहायता प्रणाली (जीवनसाथी, परिवार और दोस्तों) तक सक्रियता से पहुंच को जरूरी पाया गया।
चुनौतियों के वक्त जीवनसाथी का सहयोग अपर्याप्त
आईआईएम, अमृतसर में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अश्वथी असोकन अजिता ने कहा, ‘कोविड-19 की वजह से उत्पन्न अतिरिक्त एवं दबावपूर्ण चुनौतियों के दौरान सिर्फ जीवनसाथी का सहयोग अपर्याप्त है। पुरुषों को रोजगार असुरक्षा की वजह से महिलाओं की अपेक्षा काम व परिवार के बीच संघर्ष और व्यक्तिपरक खराब सेहत का अधिक अनुभव करना पड़ा। रोजी-रोटी कमाने की पुरुषों की भूमिका की पारंपरिक सोच इसका कारण हो सकता है।’ उन्होंने कहा कि संगठन और नीति निर्धारक महामारी जैसे प्राकृतिक संकट के दौरान अपने लिए काम करने वाले पेशेवरों और उनके परिवारों की मदद करने के लिए हस्तक्षेप कर सकते हैं और नौकरियों की छंटनी के स्तर को रेगुलेट कर सकते हैं।