कहते हैं कि मेहनत के बूते हर मंजिल पाई जा सकती है. इसे चरितार्थ किया है नालंदा के किसानों ने. खास बात यह कि इसमें महिला किसानों की बड़ी भूमिका रही है. इसी का कमाल है कि जिला सूबे में आयस्टर मशरूम के उत्पादन में पहले पायदान पर आ खड़ा हुआ है. इतना ही नहीं, बटन मशरूम उत्पादन में भी कई प्रगतिशील किसानों ने रुचि दिखाई है. एयरकंडिशनर यूनिट लगाकर अच्छी कमाई कर रहे हैं. खास बात यह भी है कि चंडी प्रखंड के अनंतपुर बिहार का पहला गांव है, जहां सालोभर आयस्टर का उत्पादन किया जाता है.
लोग इसे ‘मशरूम गांव’ के रूप में जानते हैं
किसानों की मानें तो सीजन यानी अक्टूबर से अप्रैल तक रोज जिले में करीब एक हजार किलो आयस्टर मशरूम का उत्पादन होता है. अमूमन जिले के हर गांव के 10 से 12 किसान इसकी खेती से जुड़े हैं. सिलाव के सारिलचक के तो हर घर की महिलाएं मशरूम उत्पादन करती हैं. लोग इसे ‘मशरूम गांव’ के रूप में जानते हैं. अस्थावां के ओंदा गांव की पहचान भी कुछ इसी तरह की है. नालंदा में तैयार मशरूम की मांग राजधानी पटना तक है. अस्थावां के मालती, नूरसराय के परासी और नगरनौसा में उद्यान विभाग से अनुदान लेकर तीन किसानों से बटन मशरूम की यूनिट लगाई है. जबकि, सिलाव के सूरजपुर में नई लगाई जा रही है. अमूमन एक यूनिट में एक माह में 1500 किलो बटन मशरूम तैयार होता है. मशरूम लेडी के नाम से मशहूर अनीता देवी द्वारा अनंतपुर में क्लाइमेट कंट्रोल यूनिट लगाई है. इसकी खासियत यह कि इसमें जाड़ा, गर्मी और बरसात सभी सीजन में आयस्टर मशरूम की खेती होती है.
आयस्टर मशरूम बीज बोने के 15 दिनों में होता है तैयार
ज़िले के अनुज कुमार, अनंतपुर के संजय कुमार, परासी के विनीत कुमार व अन्य कहते हैं कि मशरूम की खपत जिले में बहुत है. किसानों को बाजार की समस्या बहुत कम होती है, मंडी में बेचते हैं. कई किसान होमडिलेवरी भी करते हैं. खास यह भी कि मशरूम का पकौड़ा, अचार और पावडर बनाते हैं. सुखौता तैयार कर सालोंभर बेचते हैं. खासियत यह कि इसे घर में एक साल तक रखा जा सकता है. कच्चा के मुकाबले इसमें 20 फीसद अधिक प्रोटीन की मात्रा रहती है. इसमें पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, खनिज लवण व अन्य पोषक तत्व पाए जाते हैं.जिले में ज्यादातर किसान आयस्टर मशरूम की खेती करते हैं. आयस्टर मशरूम बीज बोने के 15 दिनों में तो बटन 20 में तैयार हो जाता है. आयस्टर के लिए जाड़े (30 डिग्री तापमान) का मौसम अनुकूल माना गया है. बटन के लिए 16 से 22 डिग्री तापमान जरूरी है.
बांस की झोपड़ी में आयस्टर की खेती
किसानों की कमाल देखिए, नौ जगहों पर बांस की झोपड़ी में आयस्टर की खेती की जा रही है. झोपड़ी बनाने के लिए विभाग से इन किसानों को अनुदान मिला है. रहुई, कतरीसराय, इस्लामपुर, अस्थावां, सरमेरा, बिहारशरीफ व हिलसा के एक-एक तो बेन के दो किसान विभाग से अनुदान लेकर झोपड़ी बनाई है. कुछ प्रगतिशिल किसान मशरूम की खेती के साथ मशरूम का स्पॉन (बीज) भी तैयार करते हैं.
कमरे या रोशनीरहित बांस की झोपड़ी में की जाती
चंडी के अनंतपुर में अनीता मशरूम स्पॉन लैब, राजगीर में बुद्धा मशरूम लैब और बिंद में सावरी मशरूम लैब है. यहां तैयार बीजों की मांग सूबे के कई जिलों में हैं. इसकी खेती फुल टाइम या पार्ट टाइम स्वरोजगार के रूप में कर सकते हैं. एक किलो मशरूम तैयार करने में लागत 60 से 70 रुपया आती है. बाजार में कीमत है 1200 रुपए किलो है. अच्छी बात यह कि इसकी खेती के लिए ज्यादा जगह की जरूरत नहीं पड़ती है. कमरे या रोशनीरहित बांस की झोपड़ी में की जाती है.
नालंदा के किसान मशरूम उत्पादन में कमाल कर रहे हैं. यही कारण है कि जिला सूबे में अव्वल है. ज्यादा से ज्यादा किसानों को इसकी खेती से जोड़ने के लिए विभाग के स्तर से कई योजनाएं चलायी जा रही हैं. इच्छुक किसानों को लाभ दिलाया जा रहा है.