सबसे दुर्गम कैलाश मानसरोवर यात्रा का उत्तराखंड वाला रास्ता सुगम होने जा रहा है। इस रास्ते पर पहले छह दिन में 79 किमी पैदल यात्रा करनी पड़ती थी। अब यह सफर वाहन से तीन दिन में पूरा कर सकेंगे। यहां सड़क निर्माण लगभग पूरा हो गया है। यात्री अल्मोड़ा या पिथौरागढ़ होते हुए चीन सीमा से लगे लिपूलेख तक गाड़ियों से पहुंच सकेंगे। घटियाबगर से लिपूलेख के बीच करीब 60 किमी लंबी सड़क तैयार हो गई है। सिर्फ 4 किमी सड़क का निर्माण बाकी है, जो इस साल के अंत तक पूरा हो जाएगा।

कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए सड़क का निर्माण 2007 में घटियाबगर से शुरू
हुआ था, पर 2014 तक निर्माण की गति बहुत धीमी रही। काम तेज करने के लिए चीन
सीमा से लगे गुंजी से भी सड़क बनाने की योजना बनाई गई, लेकिन यह कठिन था।
इसमें सबसे बड़ी चुनौती 14 हजार फीट ऊंचाई पर गूंजी तक उपकरणों को पहुंचाना
था। जेसीबी, बुलडोजर, रोड रोलर जैसे भारी उपकरणों के पार्ट्स गूंजी तक
हेलीकॉप्टर से पहुंचाए गए। वहां इंजीनियरों ने इन्हें असेंबल कर मशीनें
बनाईं। तब दोनों ओर से सड़क निर्माण शुरू हुआ। इंजीनियर, मजदूर बढ़ाए गए,
जिससे काम तेजी से हो रहा है।

मालपा से बूधी के बीच बचा है सड़क निर्माण
घटियाबगर से लिपुलेख तक 64 किमी सड़क बनाना है। इसमें मालपा से बूधी तक 4
किमी सड़क निर्माण बचा है। अप्रैल तक बर्फबारी के कारण काम बंद रहेगा। उसके
बाद काम पूरा किया जाएगा। कैलाश मानसरोवर यात्रा के आयोजक कुमाऊं मंडल
विकास निगम के पूर्व पर्यटन अधिकारी और यात्रा के पहले जत्थे में शामिल रहे
विपिन चंद पांडेय बताते हैं कि इस मार्ग से 1981 में यात्रा शुरू हुई थी।
यात्रियोंं को खतरनाक पहाड़ियों से गुजरना पड़ता रहा है। नए रास्ते से यात्रा
में समय बचेगा। आईटीबीपी के 7वीं बटालियन मिर्थी- उत्तराखंड के कमांडेंड
अनुप्रीत बोरकर कहते हैं- नए रास्ते से हमें भी फायदा है, क्योंकि यात्रा
के दौरान कई जवानों की तैनाती करनी पड़ती है। सड़क बनने के बाद इन्हें अन्य
जगह तैनात किया जा सकेगा।
इस तरह दैनिक भास्कर पहुंचा कैलाश मानसरोवर के रास्ते

एक तरफ पहाड़ों से होता भूस्खलन, दूसरी ओर गहरी खाई। 35 किमी का दुर्गम सफर
कर दैनिक भास्कर धारचूला से मंगती नाला पहुंचा। धारचूला से मंगती नाला तक
सड़क चौड़ी करने का काम जारी है। रास्ते में कई जगह जेसीबी की मदद से पत्थर
और मलबा हटवाना पड़ा, तो कई जगह गड्ढों में पत्थर भरकर रास्ता बनाना पड़ा। कई
जगह खराब सड़क में गाड़ी भी फंसी, जिसे जेसीबी की मदद से बाहर निकाला गया।
इस तरह भास्कर कैलाश मानसरोवर मोटरेबल ट्रैक तक पहुंचा। कैलाश मानसरोवर
यात्रा के दौरान रास्ते ठीक कर दिए जाते हैं ताकि तीर्थयात्री आसानी से
पहुंच सकें। इसके बाद रास्ते में मलबा यूं ही पड़ा रहता है। केवल आसपास के
गांवों में रहने वाले लोग या आईटीबीपी और आर्मी के जवान ही इसका इस्तेमाल
करते हैं।

उत्तराखंड वाला रास्ता.. अब तक ऐसे लगते हैं छह दिन
यात्रा उत्तराखंड के धारचूला से शुरू होती है। यहां से मंगती नाला तक 35 किमी गाड़ियों से जाते हैं। उसके बाद पहले दिन जिप्ती-गाला तक 8 किमी पैदल चलते हैं। यहां रात में रुककर दूसरे दिन 27 किमी चलकर बूधी, तीसरे दिन 17 किमी चलकर गूंजी पहुंचते हैं। यहां दो रातें रुकते हैं। यहीं मेडिकल जांच और मौसम से तालमेल होता है। 5वें दिन 18 किमी चलकर नबीडांग पहुंचते हैं। छठे दिन 9 किमी चलकर लिपूलेख होते हुए चीन में प्रवेश करते हैं।

नया रास्ता.. आगे सफर में ऐसे लगेंगे केवल तीन दिन
अब धारचूला से पहले दिन 6 घंटे में वाहनों से बूधी जाएंगे। अगले दिन 3 घंटे में गाड़ियों से गूजी पहुंचेंगे। दूसरी रात यहीं बितानी होगी। मेडिकल जांच के बाद तीसरे दिन लिपूलेख होकर चीन पहुंचेंगे। चीन में 80 किमी सड़क यात्रा के बाद कुगू पहुंचेंगे। वहां से मानसरोवर की ओर बढ़ेंगे। दिल्ली से यात्रा (2700 किमी) शुरू कर वापस आने में 16 दिन लगेंगे। पहले 22 दिन लगते थे।
नेपाल वाला रास्ता… भारत-चीन के बीच इस पर अनुबंध नहीं
नेपाल के रास्ते भी मानसरोवर यात्रा पर जा सकते हैं। भारत और चीन सरकार के बीच इस मार्ग पर कोई अनुबंध नहीं है। उत्तराखंड और सिक्किम वाले मार्ग से सिर्फ भारतीय यात्री ही मानसरोवर जाते हैं। यह यात्रा काठमांडू से शुरू होती है। निजी टूर ऑपरेटर अपनी सुविधा से रूट तय करते हैं। काठमांडू से मानसरोवर तक का सड़क मार्ग करीब 900 किमी लंबा है।

सिक्किम वाला रास्ता… कुल 2700 किमी का सफर
यात्री दिल्ली से सिक्किम की राजधानी गंगटोक पहुंचते हैं। यहां से 55 किमी दूर नाथूला दर्रा जाते हैं। नाथूला से चीन में प्रवेश के बाद नग्मा, लाजी और जोंग्बा तक की यात्रा छोटी बसों से होती है। जोंग्बा से मानसरोवर के तट पर स्थित कुगू तक पहुंचते हैं। यानी दिल्ली से 2700 किमी की यात्रा कर यात्री मानसरोवर परिक्रमा मार्ग पहुंचते हैं। अाने-जाने में 20 दिन का समय लगता है।
Sources:-Dainik Bhasakar