EXCLUSIVE : नीतीश महागठबंधन से अलग होंगे, BJP भी सरकार में शामिल हो सकती है

राजनीति

खबर लगभग पक्की है। नीतीश कुमार ने मन बना लिया है कि महागठबंधन से अलग होकर तन, मन और धन से बिहार बनाना है। कैसे और कब अलग होना है इसकी घोषणा सीएम द्वारा कभी भी की जा सकती है। भाजपा भी किसी रोल में रहकर बिहार को संवारने में नीतीश कुमार का साथ देगी।

वैसे, दिल्ली से टपक रही खबरों पर विश्वास किया जाए तो बीजेपी बाजाप्ता सरकार में शामिल होगी। नीतीश कुमार ने अपने तीन दिन के राजगीर प्रवास में राज्य में घट रही विस्फोटक राजनीतिक घटनाक्रम पर अपने सबसे विश्वस्त साथी रामचन्द्र प्रसाद सिंह के साथ गहन मंथन करने के बाद इस निषकर्ष पर पहुंचे कि‘लालू प्रसाद के साथ रहने में केवल घाटा ही घाटा है तथा दो नाव की सवारी करना भी राजनीतिक सेहत के लिए बेहद खतरनाक है। ऐसे में न तो माया मिलेगी न राम। बेहतर है कि पूरी एकाग्रता बिहार की जनता की सेवा को समर्पित किया जाये।
फिर, खबर के मुताबिक, दोनों मित्रों ने तय किया कि पार्टी के विधायकों, सांसदों तथा संगठन के महत्वपूर्ण लोगों की ‘राय’ जानकर महागठबंधन से तलाक का एनाउन्समेंट किसी ‘शुभ मुहुर्त’ में कर दिया जाए। कल की बैठक उसी रणनीति का अंग है। वैसे नीतीश कुमार पहले ही अपने मजबूत खुफिया तंत्र से सबकी हार्दिक इच्छा जान चुके हैं। प्रखंड से लेकर राज्य स्तर तक के संगठन पदाधिकारियों और शुभचिंतकों का दिल राजद से तत्काल तलाक के पक्ष में है। उसी प्रकार ज्यादातर सांसद और विधायक भी राजद से सम्बन्ध विच्छेद के हिमायती हैं।
अति पिछड़ा समाज से आने वाला जनता दल यू के एक विधायक ने बातचीत में लाइवबिहार.लाइव से अपनी अंतर्आत्मा की आवाज कुछ इस प्रकार शेयर की ‘शुभ कार्य में हमारे नेता को देर नहीं करना चाहिए। राजद के साथ रहकर विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। और देर करेंगे तो उनकी आकी-बाकी इज्जत भी पूरी हो जाएगी’। दूसरा विधायक, जो तन से भाजपा लेकिन मन से नीतीशमय है, ने दावा किया कि एक सप्ताह के भीतर में जय-क्षय हो जाएगा’। लालू प्रसाद और उनके परिवार के खिलाफ की जा रही सीबीआइ जांच के बाद उपजे सियासी हालात नीतीश कुमार की छवि को नेस्तनाबूद करने की ओर अग्रसर हैं। भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेन्स की छवि रखने वाले बिहार सीएम अपने को तब काफी असहज महसूस करने लगे जब 10 सर्कुलर रोड से क्लियर मैसेज आ गया कि किसी भी अवस्था में लालू के लाल इस्तीफा नहीं देंगे।
हालांकि, कल की जनता दल यू की बैठक में नीतीश कुमार ने अपने 55 मिनट के भाषण में लगभग साफ संदेश दे दिया कि ‘याचना नहीं अब रण होगा’। नवम्बर 2015 में सरकार बनने के कुछ महीने बाद ही नीतीश कुमार को महसूस होने लगा था कि लालू प्रसाद की कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं आया है। दिखने लगा कि महागठबंधन का बड़ा भाई होने के दंभ में राजद चीफ ने पैरलल सरकार चलाना शुरू कर दिया। विकास कार्य लगभग ठप्प हो गया। हर क्षेत्र में राज्य के हालात 2005 की पहले वाली मोड में जाने लगे। थोक के भाव में सीएम के पास सूचना आने लगी कि आदत से मजबूर लालू प्रसाद फोन पर अधिकारियों को सही-गलत काम के लिए अपने हड़काउ यंत्र के माध्यम से डिक्टेशन भी देने लगे जो नीतीश कुमार को काफी पिंच करने लगा। नीतीश कुमार के एक खास मित्र के अनुसार‘जब नीतीश कुमार को पता चला कि लालू प्रसाद अपने राज्यसभा सांसद प्रेमचंद गुप्ता के साथ केन्द्रीय मंत्री अरुण जेटली से मिलकर बिहार में तख्तापलट की साजिश कर रहे हैं तभी मन बना लिया था कि इस आदमी के साथ अब बैटिंग करने का कोई मतलब नहीं हैं।
कहते हैं कि सीएम का इमेडिएट रिएक्शन था ‘छवि पर तो दाग लग ही गया, अब कुर्सी पर भी संकट है’। नीतीश कुमार के एक नजदीकी का कहना है कि लालू प्रसाद की कार्यशैली से खिन्न नीतीश कुमार पिछले एक साल से रणनीति के तहत किस्म-किस्म के सियासी चाल चल रहे हैं। सर्जिकल स्ट्राइक का समर्थन, नोटबंदी के पक्ष में बोलना, राजनीतिक विरोधी पक्ष के राष्ट्रपति उम्मीदवार का समर्थन करना, दिल्ली में रहते हुए सोनिया गांधी के डिनर का बहिष्कार और पीएम नरेन्द्र मोदी के घर भोज में शामिल होना आदि फैसले उसी पैतरे के अंग हैं। ‘जो नहीं समझता है वो राजनीति विज्ञान में अल्प ज्ञानी है। नीतीश कुमार का ये स्वभाव है कि गंभीर मसले पर फैसला पहले ही ले लेते हैं और उसकी घोषणा करने से पहले विधायकों, सांसदों के अलावा के महत्वपूर्ण पदाधिकारियों से अनुमोदन कराते हैं।
2013 में बीजेपी से अलग होने और फिर जीतनराम मांझी को अपना उत्तराधिकारी बनाने से पहले नीतीश कुमार ने यही तरीका अपनाया था। परम्परा के पदचिन्हों पर चलते हुए सबों ने कल की मीटिंग में सर्वसम्मति से नीतीश कुमार को तेजस्वी प्रकरण से उपजे सियासी संकट पर निर्णय लेने का अधिकार दे दिया। बहरहाल, नीतीश कुमार को समर्थन देने के सवाल पर बीजेपी के मुठ्ठी भर राज्य स्तरीय नेता विरोध कर रहे हैं। खबर है कि केन्द्रीय नेतृत्व से नीतीश कुमार सबकुछ तय कर लिए हैं। 19 वर्षों से किसी कारण से बिछड़े दो भाईयों के पुनर्मिलन को अब रोका नहीं जा सकता है। विहार बीजेपी के शीर्षर्थ नेताओं को भी हानेवाले इस ऐतिहासिक मिलन की जानकारी है और वो मानसिक रूप से नीतीश कुमार का स्वागत करने के लिए तैयार भी हैं।

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