राष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए और विपक्ष के उम्मीदवारों की घोषणा के बाद से बिहार के महागठबंधन में दरार आती दिख रही है..
क्या इतिहास अपने आप को दोहराएगा ? 27 जून 2017 को जदयू नेता केसी त्यागी ने बयान दिया- अब गठबंधन है कहां ? जब आप अपने नेता का चरित्र हनन करेंगे तो गठबंधन कहां रह जाता है। इतना ही नहीं त्यागी ने यह भी कहा, जब हम भाजपा के साथ गठबंधन में थे तब बहुत सहज थे। तो क्या गठबंधन तोड़ने की स्क्रिप्ट लिखी जा रही है। केवल औपचारिक घोषणा ही बाकी है ? चार साल पहले कुछ ऐसा ही हुआ था। लगभग वही परिदृश्य सामने है।
12 जून 2013 को गोवा अधिवेशन में भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को लोकसभा चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष चुना था। इसका मतलब था कि नरेन्द्र मोदी ही भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। नीतीश कुमार इस फैसले से चिढ़ गये। इसके बाद जदयू की तरफ से बाजपा के किलाफ तल्ख बयानबाजी होने लगी।
नीतीश ने तब भाजपा के लिए कहा था, दुआ करते हैं जीने की और दवा देते हैं मरने की। इसके बाद भाजपा की तरफ से शाहनवाज हुसैन ने कहा था, कुछ तो मजबूरियां रहीं होगी, वर्ना कोई यूं ही बेवफा नहीं होता। जदयू और भाजपा में विरोध बढ़ता गया। गठबंधन अब टूटा कि तब टूटा की स्थिति बनती जा रही थी। हालात देख कर नीतीश सरकार में शामिल मंत्रियों ने दफ्तर जाना छोड़ दिया था।
15 जून 2013 को नीतीश कुमार ने डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी और भाजपा नेता नंदकिशोर यादव को बातचीत के लिए बुलाया था। मोदी के चुने जाने के तीन दिन बाद ही संबंध तनावपूर्ण हो चुके थे। सुशील मोदी और नंदकिशोर यादव, नीतीश कुमार से मिलने नहीं आये। तभी नीतीश ने मन ही मन बड़ा पैसला कर लिया।