तेजस्वी यादव पर जदयू का चार दिन का अल्टीमेटम : नीतीश साख भी बचायेंगे और सरकार भी?

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पटना : बिहार के मुख्यमंत्री व जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष नीतीश कुमार पर हमेशा हमलावर रहने वाले राष्ट्रीय जनता दल के बड़े नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने एक अहम बयान दिया है, जिसके बाद कयासों व अटकलाें का दौर तेज हो गया और बिहार की राजनीतिक गहमागहमी बढ़ गयी है. रघुवंश प्रसाद सिंह ने आज कहा – भ्रष्टाचार के खिलाफ नीतीश कुमार की जीरो टॉलरेंस नीति कोई नयी बात नहीं है, पहले भी भ्रष्टाचार के आरोपी नेताओं ने इस्तीफा दिया है. उन्होंने कहा कि राजनीति में पहले भी कई नेता मिसाल पेश कर चुके हैं. इस बयान के लगभग डेढ़-दो घंटे बाद तेजस्वी के मुद्दे पर स्पष्ट फैसला लेने के लिए जदयू ने आज राजद को चार दिन का समय दिया है और स्पष्ट किया है कि भ्रष्टाचार को बरदास्त करना हमारी नीति का हिस्सा नहीं है और चार दिन में राजद इस पर अपना स्टैंड स्पष्ट करे.जदयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने आक्रामक लहजे में कहा है – मिट्टी में मिल जायेंगे, लेकिन पीछे नहीं हटेंगे, हमने जीतन राम मांझी का इस्तीफा पांच घंटे में लिया था.
रघुवंश प्रसाद सिंह के  बयान को तेजस्वी के राजनीतिक भविष्य से जोड़ कर देखा जा रहा है. इसे एक संकेत के रूप में लिया जा रहा है. यह कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार अपने पुराने स्टैंड में कोई बदलाव नहीं करेंगे. ध्यान रहे कि अपने 12 साल के मुख्यमंत्रीत्व काल में भ्रष्टाचार का आरोप लगने मात्र पर नीतीश कुमार समय-समय पर चार मंत्रियों का इस्तीफा ले चुके हैं. तेजस्वी के खिलाफ तो सीबीआइ द्वारा प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी है. नीतीश कुमार को पुराने दिन याद दिला कर ही भाजपा के सुशील कुमार मोदी तेजस्वी का इस्तीफा लेने या फिर बरखास्त करने को कह रहे हैं.

नीतीश कुमार के सामने अपनी यूएसपी (यूनिक सेलिंग प्रापजिशन) बनाये रखने की चुनौती है और उनकी यूएसपी है भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति. अंगरेजी में एक कहावत है, जिसका हिंदी मायने इस प्रकार है – पैसे का नुकसान हुआ तो समझो कुछ नुकसान नहीं हुआ, स्वास्थ्य का नुकसान हुआ तो समझो थोड़ा नुकसान हुआ है और अगर चरित्र का नुकसान हो गया तो समझो सबकुछ खत्म हो गया. यह मुहावरा विभिन्न संदर्भों में लागू होता है और इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि राजनीति में यह लागू नहीं होता और वैसे राजनीतिक शख्स पर लागू नहीं होता जो खुद को एक स्टेट्समैन पॉलिटिशयन के रूप में स्थापित कर चुका हो. जो एक राज्य में गंठबंधन की सरकार चला रहा हो और उसमें राष्ट्रीय विकल्प की संभावनाएं बार-बार देखी जा रही हो.

ऐसे में तेजस्वी यादव पर स्पष्ट फैसला लेना नीतीश कुमार के लिए आवश्यक है. यह यूएसपी बचाने का मामला है और अगर वह बनी रही तो आज की सरकार रहे या जाये, राजनीतिक साख के सहारे फिर नये मुकाम को हासिल किया जा सकता है. और, नीतीश कुमार ने तो यह बार-बार साबित किया है. चाहे वह लालू से अलगाव के बाद चुनावी राजनीति में हाशिये पर जाना हो या फिर भाजपा से अलगाव के बाद लोकसभा चुनाव में दो सीटों तक सीमट जाना हो.

30 की उम्र भी पार नहीं करने वाले तेजस्वी का बिहार की राजनीति में आगाज सीधे राज्य के सबसे बड़े जनाधार वाले नेता लालू प्रसाद यादव के उत्तराधिकारी के रूप में हुआ था और डेढ़ महीने की चुनाव प्रक्रिया के बाद वे सीधे उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पर जा पहुंचे. लालू प्रसाद यादव ने बिहार चुनाव में उन्हें अपने परंपरागत गढ़ राघोपुर में लांच किया था और लांचिंग के साथ उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था, जबकि उनसे बड़े भाई तेज प्रताप भी इसके लिए मौजूद थे. लालू ने इसी दौरान बिहार विधानसभा चुनाव को अगड़ों व पिछड़ों की लड़ाई बताया था. मतलब उत्तारिधकारी के रूप में मेगा लांचिंग और उस पर लालू की पुरानी जातीय राजनीति का मुलम्मा. तो क्या लालू ने उसी दौरान यह संकेत दे दिया था कि उनके बेटे उनकी राजनीति को उनकी शैली में ही आगे बढ़ाते दिखेंगे? लालू मुख्यमंत्री बनने के कुछ सालों के बाद भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे, जबकि तेजस्वी यादव शुरुआती सालों में ही. हालांकि उन पर लगे आरोप उनके सार्वजनिक पद से नहीं नहीं निजी जीवन व लालू के पुत्र होने से संबंधित हैं. आने वाले दिनों में उन्हें पिता की तरह कानून का सामना करना होगा और ऐसे में खुद को गरीबों, पिछड़ों, वंचितों के नेता के रूप में पेश करना होगा. ऐसे में उन्हें इस कला के बारे में अपने पिता से काफी कुछ सीखने की जरूरत भी पड़ेगी ही.

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