नहाय-खाय के दिन लौकी की सब्जी और चना दाल क्यों खाया जाता है? एक्सपर्ट से जानें वजह

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आज से नहाय-खाय के साथ लोक आस्था के महापर्व छठ की शुरुआत हो गई है. चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व के पहले दिन यानि कि आज नहाय-खाय है. इस दिन लौकी की सब्जी, चने की दाल और चावल (भात) खाने का महत्व है. इसको बनाने से लेकर खाने तक हर जगह शुद्धता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है.

नहाय-खाय के दिन छठ का व्रत रखने वाले पुरुष या महिला सात्विक भोजन का सेवन करते हैं. पहले दिन खाने में ऐसी चीजों को शामिल किया जाता है, जिससे व्रत वाले दिन भूख-प्यास कम लगे. नहाय-खाय के दिन बिना प्याज, लहसुन के सब्जी बनाई जाती है. इस दिन लौकी और कद्दू की सब्जी बनाने का खास महत्व होता है. नहाय खाय में लौकी चना की दाल को भात के साथ खाया जाता है.

पटना के मशहूर ज्योतिषविद् डॉ. श्रीपति त्रिपाठी बताते हैं कि नहाय-खाय के दिन कद्दू खाने के पीछे धार्मिक मान्यताओं के साथ वैज्ञानिक महत्व भी है. इससे शरीर में पानी की कमी नहीं होती है और 36 घंटे के निर्जला उपवास के दौरान जरूरी पोषण तत्वों की भरपाई के लिए यह खाना मदद करता है. पटना के डॉ. पवन प्रकाश भी इस बात से सहमति रखते हैं.

पानी की भरपूर मात्रा

डॉक्टर और ज्योतिषविद् के बताए हुए कारण के अनुसार छठ व्रत के पहले दिन कद्दू की सब्जी और चने का दाल खाने का महत्व है. लौकी की सब्जी और चने के दाल को सात्विक भोजन माना गया है. लौकी पचाने में आसान होती है. इसमें पानी की अच्छी मात्रा होती है. जिससे शरीर को एनर्जी मिलती है. लौकी में विटामिन भरपूर होते हैं, जो व्रत के लिए शरीर को तैयार करने में मदद करते हैं. वहीं दाल में चना दाल को सबसे शुद्ध माना गया है.

इससे भात खाने में आसानी होती है और पेट भी लंबे समय तक भरा रहता है. इसके साथ ही इस दिन कद्दू को इम्युनिटी बूस्टर के तौर पर खाया जाता है, जो व्रतियों को 36 घंटे के उपवास में मदद करता है. इसमें पर्याप्त मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट पाया जाता है. कद्दू हमारे शरीर में शुगर लेवल को भी मेंटेन रखता है. इस प्रकार व्रतियों के लिए निर्जला उपवास करने में कद्दू मददगार साबित होता है. सबसे खास बात, छठ के समय लौकी का उत्पादन होने का समय होता है. इसलिए सभी वर्ग के लोगों को आसानी से मिल भी जाता है.

चार दिनों तक चलेगा यह महापर्व

छठ पूजा की शुरूआत आज यानि कि नहाय-खाय से हो गई है. आज व्रती शुद्धता का ध्यान रखते हुए लौकी की सब्जी, चने की दाल और भात खाकर निर्जला उपवास की शुरुआत करेंगी. इसके बाद 18 को खरना, 19 को सायंकालीन अर्घ्यदान और 20 को प्रातःकालीन अर्घ्य के बाद पारण होगा. इसके साथ ही इस महापर्व का समापन भी होगा.

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